Bhagavad Gita Chapter 5 in Hindi – संन्यास और निष्काम कर्म का महत्व

Anamika Mishra

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

🌸 राधे राधे! 🌸

आपका स्वागत है इस आध्यात्मिक यात्रा में, जहाँ हम Bhagavad Gita Chapter 5 in Hindi” के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के अमूल्य उपदेशों को समझेंगे। पाँचवां अध्याय – कर्म संन्यास योग हमें यह सिखाता है कि कर्म का त्याग (संन्यास) और निष्काम भाव से कर्म करना (कर्मयोग)—दोनों ही मोक्ष की ओर ले जाते हैं। लेकिन श्री कृष्ण स्पष्ट करते हैं कि कर्मयोग (कर्तव्य निभाना) अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि इससे व्यक्ति समाज में रहते हुए भी आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है।

क्या आपने कभी सोचा है कि सफलता के लिए कर्म जरूरी है या त्याग? जीवन में शांति कैसे प्राप्त करें? यदि हाँ, तो भगवद गीता का यह अध्याय आपके इन सवालों का स्पष्ट उत्तर देता है।

🔹 भगवान श्री कृष्ण कहते हैं—
सच्चा संन्यासी वही है, जो फल की इच्छा छोड़कर कर्म करता है।
जिसने अपने मन को वश में कर लिया, वही सच्ची शांति और आनंद प्राप्त करता है।
कर्म करते रहो, क्योंकि कर्म के बिना कोई भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता।

इस अध्याय में श्री कृष्ण हमें यह भी समझाते हैं कि कैसे एक कर्मयोगी बिना सांसारिक मोह में फंसे, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर की ओर अग्रसर हो सकता है।

तो आइए, “Bhagavad Gita Chapter 5 in Hindi” के इस दिव्य ज्ञान को समझें और अपने जीवन में शांति, संतुलन और आध्यात्मिक विकास का मार्ग अपनाएँ।

🙏 राधे राधे! 🙏

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi – संन्यास और कर्मयोग की तुलना (श्लोक 1-10)

श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि संन्यास और कर्मयोग में कौन श्रेष्ठ है।

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

श्लोक 5.1 – अर्जुन का प्रश्न

अर्थ:
अर्जुन बोले – हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा कर रहे हैं। कृपया सुनिश्चित रूप से बताइए कि इनमें से कौन सा मार्ग श्रेष्ठ है? Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

English Explanation:
“Arjuna said: O Krishna, You praise both renunciation of actions and the path of selfless action. Tell me definitely, which one is better?”

श्लोक 5.2 – श्रीकृष्ण का उत्तर

अर्थ:
श्रीभगवान बोले – संन्यास (कर्मों का त्याग) और कर्मयोग (कर्म करते हुए त्याग) दोनों ही कल्याणकारी हैं, लेकिन इनमें कर्मयोग संन्यास से श्रेष्ठ है।

English Explanation:
“The Blessed Lord said: Both renunciation of actions and selfless action lead to liberation, but selfless action is superior to renunciation.”

श्लोक 5.3 – सच्चा संन्यासी कौन?

अर्थ:
वह व्यक्ति सच्चा संन्यासी है जो न किसी से द्वेष करता है और न ही किसी वस्तु की इच्छा करता है। जो द्वंद्वों (सुख-दुःख, लाभ-हानि) से मुक्त है, वह सहज ही बंधन से मुक्त हो जाता है। Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

English Explanation:
“One who neither hates nor desires is to be known as an eternal renunciant. Such a person, free from dualities, easily transcends bondage.”

श्लोक 5.4 – संन्यास और कर्मयोग में भेद केवल अज्ञानी करते हैं

अर्थ:
संन्यास (ज्ञानयोग) और कर्मयोग को अलग-अलग केवल अज्ञानी लोग मानते हैं, ज्ञानी नहीं। जो किसी एक में दृढ़ता से स्थित हो जाता है, वह दोनों के फल को प्राप्त करता है।

English Explanation:
“Fools consider the paths of knowledge and selfless action as distinct, but the wise see them as one. One who is established in either attains the results of both.”

श्लोक 5.5 – संन्यास और कर्मयोग का एक ही लक्ष्य है

अर्थ:
जो स्थिति ज्ञानयोग (संन्यास) से प्राप्त होती है, वही स्थिति कर्मयोग से भी प्राप्त होती है। इसलिए, जो इन दोनों को एक मानता है, वही वास्तविक रूप से देखता है।

English Explanation:
“The state attained by renunciation is also reached through selfless action. One who sees both as the same truly sees.”

इसे भी पढ़े :- भगवद गीता अध्याय 2 (सांख्ययोग) का हिंदी अनुवाद और विस्तृत व्याख्या

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

श्लोक 5.6 – केवल संन्यास से सिद्धि कठिन है

अर्थ:
हे महाबाहो! कर्मयोग के बिना केवल संन्यास द्वारा सिद्धि प्राप्त करना कठिन है। लेकिन कर्मयोग से युक्त साधक शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

English Explanation:
“Renunciation without selfless action is difficult, O mighty-armed one. But the sage established in selfless action quickly attains Brahman.”

श्लोक 5.7 – कर्मयोगी ही सच्चा योगी है

अर्थ:
जो व्यक्ति कर्मयोग में स्थित है, जिसकी आत्मा शुद्ध है, जिसने अपने मन और इंद्रियों को जीत लिया है, और जो सभी प्राणियों में आत्मा को देखता है—वह कर्म करता हुआ भी बंधन में नहीं पड़ता।

English Explanation:
“One who is established in selfless action, with a pure soul, controlled mind, and senses, and who sees the self in all beings, remains unaffected by actions.”

श्लोक 5.8 – 5.9 – ज्ञानी का दृष्टिकोण

अर्थ:
ज्ञानी व्यक्ति यह समझता है कि वह कुछ नहीं कर रहा, चाहे वह देख रहा हो, सुन रहा हो, छू रहा हो, सूंघ रहा हो, खा रहा हो, चलता हो, सोता हो, या सांस ले रहा हो। वह यह जानता है कि इंद्रियाँ ही इंद्रियों के विषयों में स्थित हैं, वह स्वयं कुछ नहीं करता।

English Explanation:
“The wise one, knowing the truth, thinks: ‘I do nothing at all.’ Whether seeing, hearing, touching, smelling, eating, walking, sleeping, or breathing—he understands that only the senses interact with their objects.”

श्लोक 5.10 – कर्म को समर्पित करने वाला मुक्त हो जाता है

अर्थ:
जो अपने समस्त कर्म ब्रह्म में अर्पित कर देता है और आसक्ति का त्याग कर कार्य करता है, वह पाप से उसी प्रकार अछूता रहता है, जैसे जल में रहने वाला कमल-पत्ता।

English Explanation:
“One who offers all actions to Brahman and acts without attachment remains unaffected by sin, just as a lotus leaf remains untouched by water. Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi”

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi – निष्काम कर्म से मोक्ष की प्राप्ति (श्लोक 11-20)

बिना फल की इच्छा किए कर्म करने से व्यक्ति कैसे मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

श्लोक 5.11 – योगी के कर्म केवल शरीर से होते हैं

अर्थ:
योगी लोग शरीर, मन, बुद्धि और इंद्रियों से आसक्ति रहित होकर केवल आत्मा की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं।

English Explanation:
“Yogis perform actions with the body, mind, intellect, and even senses, abandoning attachment, solely for self-purification.”

श्लोक 5.12 – कर्मफल का त्याग करने वाला शांति को प्राप्त करता है

अर्थ:
जो योगी कर्मफल का त्याग करता है, वह परम शांति को प्राप्त करता है। लेकिन जो आसक्त होकर कर्म करता है, वह कर्म के फलों में लिप्त रहता है और बंधन में पड़ता है।

English Explanation:
“One who renounces the fruits of actions attains eternal peace, while one who is attached to the fruits remains bound by karma.”

श्लोक 5.13 – ज्ञानी सब कुछ त्यागकर सुखी रहता है

अर्थ:
जो आत्म-संयमित व्यक्ति मन से सभी कर्मों का संन्यास कर देता है, वह नौ-द्वारों वाले शरीर में रहते हुए भी सुखपूर्वक निवास करता है, न कुछ करता है और न किसी से करवाता है।

English Explanation:
“Renouncing all actions through the mind, the self-controlled being dwells happily in the body (the city of nine gates), neither acting nor causing action.”

श्लोक 5.14 – आत्मा कर्मों का कर्ता नहीं है

अर्थ:
परमात्मा किसी को कर्म करने के लिए बाध्य नहीं करता, न ही वह किसी को कर्मों का फल देता है। यह सब प्रकृति के स्वाभाविक गुणों के कारण होता है।

English Explanation:
“The Supreme Lord neither creates actions, nor the sense of doership, nor the union of actions with results; rather, nature operates automatically.”

श्लोक 5.15 – भगवान किसी के कर्म का दोष नहीं लेते

अर्थ:
परमात्मा किसी के पाप या पुण्य को ग्रहण नहीं करता। लेकिन अज्ञान के कारण जीव का ज्ञान आच्छादित हो जाता है, जिससे वह भ्रम में पड़ जाता है।

English Explanation:
“The Supreme Being neither accepts anyone’s sins nor merits. However, ignorance covers the knowledge of beings, leading them to delusion.”

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

श्लोक 5.16 – ज्ञान से अज्ञान नष्ट हो जाता है

अर्थ:
जिन लोगों का अज्ञान ज्ञान के द्वारा नष्ट हो जाता है, उनके लिए यह ज्ञान सूर्य की तरह आत्मा को प्रकाशित करता है।

English Explanation:
“For those whose ignorance is destroyed by knowledge, their wisdom illuminates the Supreme, just like the sun dispels darkness. Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi”

श्लोक 5.17 – जिनका मन भगवान में स्थित है, वे ज्ञान से मोक्ष प्राप्त करते हैं

अर्थ:
जिनका बुद्धि, आत्मा और श्रद्धा भगवान में स्थिर है, और जो पूरी तरह से भगवान में समर्पित हैं, वे ज्ञान के द्वारा अपने पापों को नष्ट कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।

English Explanation:
“Those whose intellect, mind, and faith are fixed in the Divine, and who are fully devoted to Him, attain liberation through the purification of knowledge.”

श्लोक 5.18 – ज्ञानी सभी को समान दृष्टि से देखता है

अर्थ:
जो ज्ञानी होते हैं, वे विद्या और विनय से सम्पन्न ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता और चांडाल (नीच जाति के व्यक्ति) को समान दृष्टि से देखते हैं।

English Explanation:
“The wise see a learned and humble Brahmin, a cow, an elephant, a dog, and an outcast with equal vision.”

श्लोक 5.19 – समानता की भावना से मुक्त व्यक्ति ब्रह्म में स्थित होता है

अर्थ:
जिनका मन समता में स्थित है, उन्होंने इसी जीवन में संसार पर विजय प्राप्त कर ली है, क्योंकि ब्रह्म (परमात्मा) निष्पाप और समभाव वाला है, इसलिए वे ब्रह्म में स्थित हो जाते हैं।

English Explanation:
“Those whose minds are established in equanimity have already conquered the material world, for the Supreme is flawless and impartial; thus, they are situated in Brahman.”

श्लोक 5.20 – ज्ञानी न सुख में हर्षित होता है, न दुख में व्यथित

अर्थ:
जो व्यक्ति ब्रह्म (परमात्मा) को जानता है, वह स्थिर बुद्धि वाला और मोह से रहित होता है। उसे प्रिय चीज़ प्राप्त होने पर हर्ष नहीं होता और अप्रिय चीज़ मिलने पर वह विचलित नहीं होता।

English Explanation:
“The knower of Brahman, whose intellect is steady and free from delusion, neither rejoices upon attaining the pleasant nor grieves upon obtaining the unpleasant.Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi”

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi – आत्मा, ईश्वर और जीवन का रहस्य (श्लोक 21-30)

श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्मा कैसे परमात्मा से जुड़ सकती है।

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

श्लोक 5.21 – आत्मा में स्थित व्यक्ति सच्चे आनंद को प्राप्त करता है

अर्थ:
जो व्यक्ति बाहरी इंद्रिय-सुख में आसक्त नहीं होता और आत्मा के भीतर सुख प्राप्त करता है, वह ब्रह्म-योग से जुड़कर शाश्वत आनंद को प्राप्त करता है।

English Explanation:
“One who is unattached to external pleasures and finds joy within the self, being united with Brahman, attains eternal bliss.”

श्लोक 5.22 – इंद्रिय-सुख दुख का कारण है

अर्थ:
इंद्रियों के संपर्क से उत्पन्न होने वाले भोग, वास्तव में दुख के कारण हैं। वे अनित्य हैं—उनका आदि और अंत होता है। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति उनमें आनंद नहीं लेता।

English Explanation:
“Pleasures born of sensory contact are verily sources of misery. They have a beginning and an end, so the wise do not delight in them.”

श्लोक 5.23 – जो इच्छाओं को जीत लेता है, वह मुक्त हो जाता है

अर्थ:
जो मनुष्य शरीर छोड़ने से पहले ही काम (वासना) और क्रोध से उत्पन्न वेग को सहन कर लेता है, वह योगी और सच्चा सुखी व्यक्ति होता है।

English Explanation:
“One who can withstand the force of desire and anger even before giving up the body is a true yogi and a truly happy person.”

श्लोक 5.24 – जो आत्मानंद में स्थित है, वही ब्रह्म को प्राप्त करता है

अर्थ:
जो व्यक्ति अपने भीतर ही सुख, आनंद और प्रकाश को अनुभव करता है, वह योगी ब्रह्म में लीन होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

English Explanation:
“One who finds joy, delight, and light within himself attains liberation by becoming one with Brahman.”

श्लोक 5.25 – ब्रह्म में स्थित ज्ञानीजन मोक्ष को प्राप्त होते हैं

अर्थ:
जिनका पाप नष्ट हो गया है, जो संदेहों से मुक्त हैं, और जिनका मन संयमित है, तथा जो सभी प्राणियों के हित में लगे रहते हैं, वे ब्रह्म में लीन होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं।

English Explanation:
“Sages who have destroyed their sins, are free from doubts, have controlled their minds, and are devoted to the welfare of all beings, attain liberation in Brahman.”

Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi

श्लोक 5.26 – जो राग, भय और क्रोध से मुक्त हैं, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं

अर्थ:
जो मुनि (संन्यासी) काम और क्रोध से मुक्त हो गए हैं, जिनका चित्त संयमित है, और जिन्होंने आत्मा को जान लिया है, वे ब्रह्म में लीन होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं।

English Explanation:
“For those who are free from desire and anger, who have controlled their minds, and who have realized the self, liberation in Brahman is assured.”

श्लोक 5.27-5.28 – ध्यानयोग द्वारा मोक्ष प्राप्त होता है

अर्थ:
जो योगी बाहरी विषयों का त्याग कर देता है, अपनी दृष्टि को भ्रू-मध्य में स्थिर करता है, तथा श्वास-प्रश्वास को संतुलित करता है, उसकी इंद्रियाँ, मन और बुद्धि संयमित हो जाती हैं। जो व्यक्ति इच्छाओं, भय और क्रोध से मुक्त होता है, वह सदैव मुक्त ही रहता है।

English Explanation:
“With senses withdrawn from external objects, gaze fixed between the eyebrows, and breath balanced, the sage who is free from desires, fear, and anger is always liberated.”

श्लोक 5.29 – भगवान ही सभी यज्ञों और तपों के भोक्ता हैं

अर्थ:
जो मनुष्य यह जान लेता है कि मैं (भगवान) ही सभी यज्ञों और तपों का भोक्ता हूँ, समस्त लोकों का स्वामी हूँ और सभी जीवों का सच्चा हितैषी हूँ—वह पूर्ण शांति को प्राप्त करता है।

English Explanation:
“One who understands Me as the ultimate recipient of all sacrifices and austerities, the Supreme Lord of all worlds, and the true well-wisher of all beings, attains peace.”

निष्कर्ष

“Bhagavad Gita Adhyay 5 Summary in Hindi” हमें सिखाता है कि कर्मयोग और संन्यास दोनों ही मोक्ष के मार्ग हैं, लेकिन संसार में रहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करना और निष्काम भाव से कर्म करना ही सबसे श्रेष्ठ है।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न: कर्मयोग और संन्यास में क्या अंतर है?

उत्तर: कर्मयोग में व्यक्ति अपने कर्तव्यों को बिना स्वार्थ के करता है, जबकि संन्यास में व्यक्ति कर्म का त्याग कर देता है।

प्रश्न: श्रीकृष्ण ने कर्मयोग को क्यों श्रेष्ठ बताया?

उत्तर: क्योंकि कर्मयोग से व्यक्ति समाज में रहते हुए भी आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है, जबकि संन्यास हर किसी के लिए संभव नहीं होता।

प्रश्न: मोक्ष प्राप्ति के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर: निष्काम कर्म, आत्मज्ञान, ईश्वर में आस्था और समभाव बनाए रखना मोक्ष की ओर ले जाता है।

प्रश्न: सच्चा संन्यासी कौन होता है?

उत्तर: जो व्यक्ति अहंकार और इच्छाओं से मुक्त होकर बिना किसी फल की चिंता किए कर्म करता है, वही सच्चा संन्यासी है।

प्रश्न: इस अध्याय से हमें क्या सीख मिलती है?

उत्तर: हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और फल की चिंता किए बिना निष्काम भाव से कर्म करते रहना चाहिए।

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