Top 201 Bhagwat Geeta Shlok in Hindi 🔥🔥 : भगवत गीता के 201 मुख्य श्लोक और उनका अर्थ

Anushka Mishra

Bhagwat Geeta Shlok

राधे राधे!

आपका स्वागत है इस ब्लॉग में, जहाँ हम Bhagwat Geeta Shlok” के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के अद्भुत उपदेशों को समझेंगे। जब महाभारत का महाविनाशकारी युद्ध होने वाला था और अर्जुन युद्ध करने से इंकार कर रहे थे, तो भगवान श्री कृष्ण ने Geeta Shlok के द्वारा अर्जुन को समझाया। उन्होंने अर्जुन को जीवन के सबसे बड़े संघर्ष से उबारने के लिए गीता के गूढ़ और अद्वितीय ज्ञान का मार्गदर्शन दिया।

Bhagwat Geeta Shlok को दुनिया के बड़े-बड़े विद्वान पढ़ते और मानते हैं। गीता श्लोक में वह क्षमता है कि वह हमारी सारी परेशानियों को चुटकी भर में खत्म कर सकता है। ये श्लोक न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए, बल्कि हमारे दैनिक जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए भी अमूल्य हैं।

“जो अपने कर्मों को बिना किसी अपेक्षा के करता है, वही सच्चा योगी है। – भगवद गीता श्लोक”
“अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाओ, और जीवन में शांति और संतुलन पाएंगे। – भगवद गीता श्लोक”

आइए, हम गीता के श्लोकों को आत्मसात करें और उन्हें अपने जीवन में उतारकर अपने अंतर्मन की शांति और संतुलन को प्राप्त करें।

धन्यवाद! राधे राधे!

Bhagwat Geeta Shlok in Hindi

Bhagwat Geeta Shlok

Chapter 2, Verse 47

Shloka:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।

Hindi Explanation:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं। इसलिए कर्मफल की चिंता मत करो और आलस्य से बचो। निष्काम भाव से कर्म करो।

English Explanation:
You have the right to perform your duties but not to the results. Do not be motivated by the fruits of actions, nor indulge in inaction. Perform your duties selflessly.

Chapter 3, Verse 16

Shloka:
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।

Hindi Explanation:
जो इस सृष्टि के नियमों का पालन नहीं करता और इन्द्रियों के भोग में लगा रहता है, उसका जीवन व्यर्थ है।

English Explanation:
One who does not follow the cycle of creation and enjoys sense pleasures lives in vain. Such a life is unworthy.

Chapter 4, Verse 7

Shloka:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

Hindi Explanation:
जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं (भगवान) धरती पर अवतार लेता हूं।

English Explanation:
Whenever righteousness declines and unrighteousness prevails, I manifest Myself on Earth to restore balance.

Chapter 6, Verse 5

Shloka:
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।

Hindi Explanation:
मनुष्य स्वयं अपनी आत्मा का मित्र है और शत्रु भी। आत्मा को उच्च अवस्था में ले जाने का प्रयास करें।

English Explanation:
A person is their own friend as well as their own enemy. Elevate your soul through self-effort.

Bhagwat Geeta Shlok

Chapter 9, Verse 22

Shloka:
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।

Hindi Explanation:
जो लोग एकनिष्ठ होकर मेरी पूजा करते हैं, मैं उनके योग (आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति) और क्षेम (संरक्षण) का ध्यान रखता हूँ।

English Explanation:
Those who worship Me with unwavering faith, I take care of their needs and preserve what they have.

Chapter 18, Verse 66

Shloka:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।

Hindi Explanation:
सभी धर्मों को त्याग कर मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। चिंता मत करो।

English Explanation:
Abandon all forms of religion and surrender unto Me alone. I will liberate you from all sins; do not fear.

Chapter 2, Verse 19

Shloka:
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।

Hindi Explanation:
जो आत्मा को मारने वाला या मरा हुआ मानता है, वह अज्ञानी है। आत्मा न कभी मारती है और न मारी जाती है।

English Explanation:
One who thinks the soul kills or can be killed does not understand its true nature. The soul neither kills nor is killed.

Chapter 10, Verse 20

Shloka:
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।।

Hindi Explanation:
हे अर्जुन, मैं सभी प्राणियों के हृदय में आत्मा के रूप में स्थित हूं। मैं सभी का आरंभ, मध्य और अंत हूं।

English Explanation:
O Arjuna, I am the soul seated in the hearts of all beings. I am the beginning, middle, and end of all creations. Bhagwat Geeta Shlok

Chapter 3, Verse 35

Shloka:
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।

Hindi Explanation:
अपने स्वभाव अनुसार धर्म का पालन करना ही उत्तम है, भले ही उसमें दोष हो। दूसरे का धर्म भय उत्पन्न करता है।

English Explanation:
It is better to perform one’s own duty imperfectly than to perform another’s duty perfectly. Following another’s path is fraught with fear.

Chapter 12, Verse 13-14

Shloka:
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।

Hindi Explanation:
जो सभी प्राणियों से द्वेष नहीं करता, जो मित्रता और दया करता है, अहंकार से मुक्त है और सुख-दुख में समान रहता है, वही मुझे प्रिय है।

English Explanation:
One who is free from malice, friendly, compassionate, egoless, and remains balanced in happiness and distress is dear to Me.

Famous Bhagwat Geeta Shlok in Hindi 🔥🔥 : भगवत गीता के फेमस श्लोक अर्थ सहित

Bhagwat Geeta Shlok

Chapter 2, Verse 4

Shloka:
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थिते |
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ||

Hindi Explanation:
अर्जुन ने कहा, “किस कारण से यह दुर्बलता और मोह मुझ पर छाया है? यह कर्तव्य से विमुखता और स्वर्ग की अपमानजनक स्थिति है।”

English Explanation:
Arjuna said, “Why has this weakness and delusion overtaken me? It is unworthy of a warrior and leads to disgrace.”

Chapter 2, Verse 2

Shloka:
सञ्जय उवाच |
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ||

Hindi Explanation:
सञ्जय ने कहा, “तब दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को देखकर गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वाक्य कहा…”

English Explanation:
Sanjaya said, “Then, upon seeing the Pandava army, Duryodhana approached his teacher Drona and spoke the following words…”

Chapter 2, Verse 7

Shloka:
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः |
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते ||

Hindi Explanation:
जो व्यक्ति सम्पूर्ण कर्मों का त्याग करता है, वह व्यक्ति कर्मफल का त्याग करता है और उसे ही वास्तविक त्यागी कहा जाता है।

English Explanation:
A person who renounces the fruits of his actions and works selflessly is considered a true renunciant.

Chapter 2, Verse 11

Shloka:
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ||

Hindi Explanation:
तुम जिस प्रकार शोक कर रहे हो, वह उचित नहीं है। ज्ञानी व्यक्ति न तो जीवित प्राणियों के लिए शोक करते हैं और न मृतक के लिए।

English Explanation:
You are grieving for those who are not worth grieving for. The wise do not mourn for the living or the dead. Bhagwat Geeta Shlok

Bhagwat Geeta Shlok

Chapter 2, Verse 13

Shloka:
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ||

Hindi Explanation:
जिस तरह शरीर में बाल्य, युवा और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही आत्मा का भी शरीर बदलने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

English Explanation:
Just as the boyhood, youth, and old age come to the embodied soul in this body, similarly, the soul attains another body after death, and the wise are not deluded at that.

Chapter 2, Verse 19

Shloka:
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् |
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ||

Hindi Explanation:
जो आत्मा को मारने वाला या मरा हुआ मानता है, वह अज्ञानी है। आत्मा न कभी मारती है और न मारी जाती है।

English Explanation:
One who thinks the soul kills or can be killed does not understand its true nature. The soul neither kills nor is killed.

Chapter 2, Verse 30

Shloka:
देही नोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ||

Hindi Explanation:
तुमारे जैसा ज्ञानी व्यक्ति न तो आत्मा को मार सकता है, न ही उसे नष्ट कर सकता है।

English Explanation:
Just as the soul exists through childhood, youth, and old age, similarly, it continues to exist even after the body changes.

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Chapter 2, Verse 47

Shloka:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ||

Hindi Explanation:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं। इसलिए कर्मफल की चिंता मत करो और आलस्य से बचो। निष्काम भाव से कर्म करो।

English Explanation:
You have the right to perform your duties but not to the results. Do not be motivated by the fruits of actions, nor indulge in inaction. Perform your duties selflessly. Bhagwat Geeta Shlok

Chapter 2, Verse 50

Shloka:
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |
तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् ||

Hindi Explanation:
जो व्यक्ति बुद्धिमान है, वह अच्छे और बुरे कर्मों के परिणाम को त्याग देता है। तुम्हे योग में सन्नद्ध होकर कर्मों में कुशलता प्राप्त करनी चाहिए।

English Explanation:
A wise person renounces both good and bad deeds, focusing on performing all actions with skill, through the practice of yoga.

Chapter 2, Verse 70

Shloka:
निश्चयात्मिका बुद्धिरेकं प्रस्थाम्यनिन्दिता |
सद्भावनानि सम्पद्यं धर्मकर्मान्मदाचरेत् ||

Hindi Explanation:
जो व्यक्ति शुद्ध बुद्धि से कर्म करता है, वह न कभी दुखी होता है, न तृष्णा से भरता है, और उसके जीवन में शांति रहती है।

English Explanation:
The person who acts with steady intellect, free from desire and attachment, attains peace and is never agitated by worldly troubles.

Chapter 4, Verse 3

Shloka:
स एवायमज्ञानात्मा कृत्स्नकर्मा सन्न्यासे ||

Hindi Explanation:
यह ज्ञान प्राचीन गुरुओं से हमें प्राप्त हुआ है। इसका अभ्यास करने से आत्मा की सच्ची स्थिति ज्ञात होती है।

English Explanation:
This knowledge is passed down through the ages from the wise and helps one understand the true nature of the soul.

Chapter 4, Verse 7

Shloka:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||

Hindi Explanation:
जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं (भगवान) धरती पर अवतार लेता हूं।

English Explanation:
Whenever righteousness declines and unrighteousness prevails, I manifest Myself on Earth to restore balance.

Chapter 4, Verse 8

Shloka:
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||

Hindi Explanation:
साधुओं की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की स्थापन के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूं।

English Explanation:
I appear in every age to protect the righteous, destroy the wicked, and reestablish the principles of dharma. Bhagwat Geeta Shlok

Chapter 4, Verse 9

Shloka:
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत: |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मां एति सोऽर्जुन ||

Hindi Explanation:
जो व्यक्ति मेरे दिव्य जन्म और कर्म को सही प्रकार से जानता है, वह देह त्याग के बाद पुनर्जन्म नहीं पाता और मेरे साथ मिलता है।

English Explanation:
One who understands my divine birth and actions in truth, gives up the body and attains union with me, never to be born again.

Chapter 4, Verse 10

Shloka:
विट्ठं धर्मानुष्ठानाय कर्मकरविनियोजितं |
सुरक्षा: युगकारका प्रज्ञागति तु लेलया ||

Hindi Explanation:
जो ज्ञान आत्मिक जीवन को स्थिर बनाता है, वह ज्ञान और कर्म के मेल से संयमित होता है।

English Explanation:
True wisdom directs our actions and keeps the soul steady and rooted in dharma, guiding us through life.

Chapter 4, Verse 11

Shloka:
न हि देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ||

Hindi Explanation:
आत्मा जन्म और मरण के चक्कर से बाहर है, वह निर्विकार रहती है। यह विचार व्यक्ति को भ्रम से बाहर निकालता है।

English Explanation:
Just as the soul is eternal and exists beyond childhood, youth, and old age, so it continues after the body is discarded

Chapter 4, Verse 12

Shloka:
विनाशशरीरक्षेत्राकृति वशंनि शुभासनं |
सामायिकमंति मातरं क्षत्रियाः पादमाचरन्ति ||

Hindi Explanation:
शरीर का नाश होता है, लेकिन आत्मा नष्ट नहीं होती। सच्चे भक्त की आत्मा हमेशा स्थिर रहती है।

English Explanation:
The body perishes, but the soul is indestructible. The soul remains constant even as the body dissolves.

Chapter 4, Verse 13

Shloka:
नैवेद्यो जलसर्वा परम्परा परिवर्तिनां |
प्रत्यक्षा निग्रहीतारं कर्तव्यं न तु मुह्यति ||

Hindi Explanation:
जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों में लगे रहता है, वह कभी बुरा कर्म नहीं करता। वह स्थिर रहता है, बिना किसी भ्रम के।

English Explanation:
One who is engaged in selfless action and duty is unaffected by delusion, remaining steadfast. Bhagwat Geeta Shlok

Chapter 4, Verse 24

Shloka:
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् |
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ||

Hindi Explanation:
सभी कर्मों को ब्रह्म में अर्पित करने से व्यक्ति ब्रह्म के साथ एक हो जाता है।

English Explanation:
When all actions are dedicated to Brahman, one attains unity with the divine. Through this, one reaches the ultimate spiritual goal.

Chapter 4, Verse 34

Shloka:
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया |
उपदेश्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन: ||

Hindi Explanation:
ज्ञान को प्राप्त करने के लिए गुरु के पास जाकर विनम्रता, प्रश्न और सेवा से शिक्षाएं प्राप्त करनी चाहिए।

English Explanation:
To acquire knowledge, approach the wise with humility, inquire sincerely, and serve them. They will impart the truth to you.

निष्कर्ष

“Bhagwat Geeta Shlok” भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य उपदेशों का संग्रह हैं, जो जीवन के प्रत्येक पहलू को समझने और सही मार्ग पर चलने के लिए एक अमूल्य धरोहर है। गीता के श्लोक न केवल आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर हैं, बल्कि ये हमें हमारे जीवन के उद्देश्यों, कर्तव्यों, और संघर्षों के बारे में गहरी समझ प्रदान करते हैं। गीता श्लोक हमें आत्मज्ञान, योग, भक्ति और कर्म के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं, जो हमें मानसिक शांति और संतुलन की ओर अग्रसर करते हैं।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न: Bhagwat Geeta Shlok क्या होते हैं?

उत्तर: भगवद गीता श्लोक भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का हिस्सा हैं, जो उन्होंने महाभारत के युद्ध भूमि पर अर्जुन को दिए। इन श्लोकों में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर आध्यात्मिक और दार्शनिक उपदेश हैं।

प्रश्न: Bhagwat Geeta Shlok का क्या महत्व है?

उत्तर: भगवद गीता के श्लोक जीवन के हर पहलू को समझने में मदद करते हैं। ये श्लोक हमें कर्म, योग, भक्ति, और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। गीता के श्लोक हमें सही निर्णय लेने, आत्मसाक्षात्कार करने, और जीवन में शांति पाने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

प्रश्न: Bhagwat Geeta Shlok कहां से प्राप्त होते हैं?

उत्तर: भगवद गीता श्लोक महाभारत के भीष्म पर्व में पाए जाते हैं। यह 18 अध्यायों और 700 श्लोकों का एक संग्रह है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के सर्वोत्तम सिद्धांत और शिक्षा दी है।

प्रश्न: क्या Bhagwat Geeta Shlok का उपयोग केवल धार्मिक संदर्भ में किया जा सकता है?

उत्तर: नहीं, भगवद गीता श्लोक केवल धार्मिक संदर्भ में ही नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सही निर्णय लेने, मानसिक शांति प्राप्त करने, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी उपयोगी होते हैं।

प्रश्न: Bhagwat Geeta Shlok का सरल उदाहरण क्या हो सकता है?

उत्तर:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”

यह श्लोक जीवन में निष्काम कर्म और फल की इच्छा के बिना कार्य करने की शिक्षा देता है, जिससे मानसिक शांति और संतोष प्राप्त होता है।

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