शनिवार मां काली व्रत कथा | Maa Kali Shanivar Vrat Katha Popular 10 Katha

Anushka Mishra

Maa Kali Shanivar Vrat Katha

जय माता दी!
सनातन धर्म में मां काली Maa Kali Shanivar Vrat Katha का विशेष स्थान है। वे मां दुर्गा का उग्र और विकराल रूप हैं, जो अधर्म और असुरों के नाश के लिए जानी जाती हैं। खासकर शनिवार के दिन मां काली की आराधना और व्रत करने से सभी दुख, भय और बाधाएं दूर होती हैं।
इस लेख में हम जानेंगे — शनिवार मां काली व्रत की पावन कथा, जिसे सुनने मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं और मन को अपार शांति मिलती है।

कथा का प्रारंभ

माँ काली और दारुक का युद्ध: एक अद्भुत कहानी

Maa Kali Shanivar Vrat Katha

बहुत समय पहले की बात है। एक बार दारुक नाम का एक राक्षस था, जो अत्यंत क्रूर और घमंडी था। उसने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे वरदान पा लिया कि उसे कोई पुरुष नहीं मार सकेगा। यह वरदान पाकर दारुक का अहंकार और अत्याचार दोनों बढ़ने लगे। उसने धार्मिक अनुष्ठानों को रोक दिया, ब्राह्मणों को सताने लगा, और यहाँ तक कि स्वर्गलोक पर भी अधिकार जमा लिया।

देवता भयभीत हो उठे। वे ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचे, लेकिन दारुक की शक्ति इतनी अधिक थी कि वह उन सभी देवताओं पर भी भारी पड़ने लगा। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि इस राक्षस का अंत केवल एक स्त्री द्वारा ही संभव है।

जब सब ओर से निराशा छा गई, तो देवता भगवान शिव की शरण में कैलाश पर्वत पहुंचे। उन्होंने भगवान शिव को दारुक के अत्याचारों के बारे में बताया। भगवान शिव ने मां पार्वती की ओर देखा और उनसे प्रार्थना की – “हे कल्याणी, इस संसार के कल्याण के लिए, कृपया इस दुष्ट राक्षस का वध करें।”

मां पार्वती मुस्कुराईं। उन्होंने अपने एक अंश को शिवजी के भीतर प्रवेश करा दिया। वह अंश शिवजी के कंठ में स्थित विष से प्रभावित होकर काले वर्ण का हो गया। उसी क्षण शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोला, और उस उग्र ऊर्जा से मां काली प्रकट हुईं।

मां काली का रूप अत्यंत विकराल था। उनके हाथों में त्रिशूल, तलवार और अन्य आयुध थे। उनके गले में मुण्डमाल थी और उनका पूरा शरीर दिव्य शक्ति से चमक रहा था। उनके प्रकट होते ही उन्होंने एक भीषण हुंकार भरी और दारुक सहित उसकी पूरी राक्षस सेना को भस्म कर दिया।

लेकिन मां काली का क्रोध अभी शांत नहीं हुआ था। उनका उग्र रूप इतना प्रचंड था कि संपूर्ण लोक जलने लगा। देवता भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे। भगवान शिव यह देखकर चिंतित हुए। उन्होंने एक नन्हे बालक का रूप धारण किया और श्मशान भूमि में जाकर लेट गए और बालक की तरह रोने लगे।

मां काली, जो अब भी क्रोध में थीं, जैसे ही उस रोते हुए बालक को देखा, उनका हृदय वात्सल्य से भर गया। वह बालक उन्हें अत्यंत प्रिय लगा। उन्होंने उसे गोद में उठा लिया, अपने हृदय से लगाया और अपने स्तनों से दूध पिलाने लगीं।

मां काली को पता नहीं था कि वह बालक कोई और नहीं, स्वयं भगवान शिव हैं। दूध के साथ-साथ भगवान शिव ने मां काली के अंदर के उग्र क्रोध को भी पी लिया। तभी मां काली मूर्छित होकर गिर पड़ीं।

जब उन्हें होश में लाना जरूरी हुआ, तब भगवान शिव ने तांडव किया। उनका नृत्य देख मां काली भी नृत्य करने लगीं। तभी से उन्हें योगिनी कहा जाने लगा — जो योग, शक्ति और रक्षण की प्रतीक हैं।

यही है मां काली की वह अद्भुत कथा, जो न केवल उनके उग्र रूप की व्याख्या करती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे ममता और प्रेम के आगे सबसे भयानक क्रोध भी शांत हो जाता है।

आज भी, जो भक्त सच्चे मन से शनिवार को मां काली का व्रत रखते हैं और उनकी इस कथा को श्रद्धा से सुनते हैं, उनके जीवन से संकट, भय और दुख दूर हो जाते हैं। मां काली अपने भक्तों की सच्ची प्रार्थना अवश्य सुनती हैं और उन्हें अपार बल व आत्मविश्वास देती हैं।

जय काली माता की।

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मां काली और भक्त ब्राह्मण की कथा

Maa Kali Shanivar Vrat Katha

बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव में हरिदत्त नाम का एक गरीब मगर अत्यंत धार्मिक ब्राह्मण रहता था। वह सादा जीवन जीता, रोज़ सुबह स्नान करके पूजा करता और सच्चे मन से मां काली की आराधना करता था। उसके पास धन-दौलत नहीं थी, लेकिन उसकी श्रद्धा इतनी गहरी थी कि मां काली उसे हर संकट से बचा लेती थीं।

हर शनिवार को हरिदत्त मां काली का व्रत रखता, उपवास करता और रात भर मां काली का भजन गाता। गांव के लोग उसका मजाक उड़ाते, कहते कि पूजा-पाठ से पेट नहीं भरता, मेहनत कर और कुछ कमा। लेकिन हरिदत्त का विश्वास अडिग था — “मां काली सब देखती हैं, समय आने पर वह मुझे भी सम्मान देंगी।”

एक दिन गांव में एक भयावह दानव आ पहुंचा। वह राक्षस गांव के लोगों को डरा-धमका कर धन और भोजन छीनने लगा। किसी में इतनी शक्ति नहीं थी कि उससे मुकाबला कर सके। जब गांववालों ने राजा से सहायता मांगी, तब भी कोई उपाय काम ना आया।

हरिदत्त, जो मां काली का अनन्य भक्त था, शांत भाव से मां से प्रार्थना करने बैठ गया — “हे महामाया, हे महाकाली, यह गांव तुम्हारे बच्चों का है, इस पर संकट आया है, कृपा कर इसे बचाओ।”

उसी रात, जब वह गहरे ध्यान में था, मां काली स्वयं प्रकट हुईं। उनके रूप की तेज़ आभा से सारा कमरा उज्ज्वल हो उठा। उन्होंने कहा, “वत्स, तुम्हारी भक्ति से मैं प्रसन्न हूं। कल भोर होते ही वह दानव मारा जाएगा, और तुम्हारा नाम इस गांव में सम्मान से लिया जाएगा।”

अगले दिन जब राक्षस गांव में उत्पात मचाने आया, तभी आकाश से एक भयानक गर्जना हुई। काले मेघों की तरह मां काली प्रकट हुईं, उनके बाल खुले थे, आंखें क्रोध से लाल, और हाथ में खून से सना त्रिशूल था। उन्होंने एक ही झटके में उस दानव को चीर डाला। धरती पर शांति लौट आई।

गांव के लोगों ने जब मां काली को हरिदत्त के आंगन में प्रकट होते देखा, तो वे नतमस्तक हो गए। सभी को यह समझ आ गया कि सच्ची भक्ति किसी भी संकट को टाल सकती है।

तब से उस गांव में हर शनिवार मां काली का व्रत बड़े धूमधाम से रखा जाने लगा। लोग हरिदत्त की तरह सच्चे मन से व्रत रखने लगे और मां काली का नाम हर घर में गूंजने लगा।

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इस कथा से हमें यही सिखने को मिलता है कि सच्ची भक्ति, बिना किसी लोभ के की जाए तो देवी स्वयं आकर संकट हर लेती हैं। मां काली केवल विकराल रूप की देवी नहीं, बल्कि अपने भक्तों की ममतामयी रक्षक भी हैं।

प्रेम से बोलो – जय काली माता की

Maa Kali Shanivar Vrat Katha – एक बहादुर स्त्री और मां काली की कृपा

बहुत समय पहले की बात है। पूर्वांचल के एक छोटे से गांव में सुशीला नाम की एक विधवा स्त्री अपने छोटे पुत्र के साथ रहती थी। उसका जीवन संघर्षों से भरा था, पर वह मां काली की परम भक्त थी। हर शनिवार को वह Maa Kali Shanivar Vrat Katha सुनती और व्रत रखती थी। उसने अपने बेटे को भी सिखाया कि संकट के समय मां काली ही रक्षा करती हैं।

गांव में अक्सर डकैतों का भय बना रहता था। एक रात की बात है, गांव में डकैतों ने हमला कर दिया। लोग डर के मारे अपने घरों में छिप गए, लेकिन सुशीला डरी नहीं। उसने अपने घर के द्वार पर मां काली की तस्वीर रख दी, दिया जलाया और जोर-जोर से मां का नाम जपने लगी – “जय जय काली माता!”

डकैत जब उसके घर पहुंचे, तो जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें रोक रही हो। वे दरवाजे से भीतर नहीं घुस पाए। उसी समय आसमान में बिजली कड़की, और डकैतों को लगा जैसे कोई विकराल स्त्री त्रिशूल लिए उनकी ओर बढ़ रही हो। घबराकर वे वहां से भाग खड़े हुए।

सुबह होते ही गांववालों को सुशीला की इस भक्ति और चमत्कार का पता चला। सभी ने माना कि यह मां काली की कृपा से ही संभव हुआ। उसी दिन से गांव में हर शनिवार को Maa Kali Shanivar Vrat Katha का आयोजन होने लगा।

लोग सुशीला के घर इकट्ठा होते, मां की आरती गाते, कथा सुनते, और व्रत रखते। धीरे-धीरे गांव में सुख-शांति लौट आई, और मां काली की कृपा से गांव का नाम भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया।


इस Maa Kali Shanivar Vrat Katha से यह सिखने को मिलता है कि मां काली केवल राक्षसों का संहार करने वाली देवी नहीं, बल्कि अपने भक्तों की रक्षा करने वाली ममतामयी मां भी हैं। सच्चे मन से जो उनका नाम लेता है, वह कभी संकट में अकेला नहीं होता।

प्रेम से बोलो – जय काली माता की

Maa Kali Shanivar Vrat Katha – सच्ची भक्ति की शक्ति

बहुत समय पहले की बात है। उत्तर भारत के एक गांव में भीमा नाम का एक दरिद्र और सीधा-सादा किसान रहता था। जीवन में गरीबी, कष्ट और बीमारी ने उसे घेर रखा था, लेकिन उसकी भक्ति में कभी कमी नहीं आई। वह हर शनिवार मां काली का व्रत रखता और नियमपूर्वक Maa Kali Shanivar Vrat Katha सुना करता।

भीमा का एक ही सपना था—अपने बच्चों को अच्छे से पाल-पोसकर बड़ा करना। लेकिन किस्मत उसे बार-बार परखती रही। एक बार भयंकर अकाल पड़ा, खेत सूख गए, घर में अन्न का एक दाना तक न बचा। गांववाले शहर की ओर पलायन करने लगे, लेकिन भीमा ने गांव नहीं छोड़ा। उसने कहा—“मेरी मां काली जब तक हैं, मैं कहीं नहीं जाऊंगा। वे मेरी परीक्षा ले रही हैं, पर मैं हार नहीं मानूंगा।”

शनिवार का दिन था। भीमा ने उपवास रखा, घर में एक दिया जलाया और टूटे हुए गले से मां काली की स्तुति करने लगा। आंखों से आंसू बहते जा रहे थे, लेकिन उसका विश्वास अडिग था।

रात के अंधेरे में जब सब सो गए, तभी एक चमत्कार हुआ।

एक अपरिचित वृद्धा उसके दरवाजे पर आईं। उनके हाथ में एक थैला था। उन्होंने कहा, “बेटा, ये तेरे लिए मां काली का प्रसाद है।” भीमा ने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया। थैले में गेहूं, चावल, दाल और कुछ पैसे थे। आंखों से बहते आंसुओं के साथ उसने मां को धन्यवाद दिया।

सुबह जब गांववाले जागे, तो देखा भीमा के खेत में हरियाली लहलहा रही थी। जहां अकाल पड़ा था, वहां जल की धाराएं बह रही थीं। सब हैरान थे।

भीमा ने गांववालों को बुलाकर सच्ची भक्ति और Maa Kali Shanivar Vrat Katha की महिमा सुनाई। उसके बाद गांव के हर घर में शनिवार को दीप जले, मां काली की पूजा हुई और कथा सुनी गई।


इस Maa Kali Shanivar Vrat Katha से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब भक्ति सच्ची हो और श्रद्धा गहरी हो, तो मां काली स्वयं अपने भक्तों के द्वार आती हैं। कठिनाइयाँ चाहे कितनी भी हों, जो मां पर अडिग विश्वास रखता है, वह कभी हार नहीं सकता।

जय जय काली मां! शक्ति स्वरूपिणी! संकट हरिणी

निष्कर्ष (Conclusion)

“Maa Kali Shanivar Vrat Katha” केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि विश्वास, भक्ति और आस्था की जीती-जागती मिसाल है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, अगर हम सच्चे मन से मां काली की उपासना करते हैं, तो वे अवश्य ही हमारे कष्टों को हर लेती हैं। संकटों से लड़ने की शक्ति, मन को दृढ़ बनाने का आत्मबल और ईश्वर में अटूट विश्वास—यही इस कथा की सबसे बड़ी प्रेरणा है।

जय माँ काली

प्रश्न: Maa Kali Shanivar Vrat Katha किस दिन और क्यों सुननी चाहिए?

उत्तर: यह कथा शनिवार को मां काली के व्रत के दिन सुनना अत्यंत शुभ होता है। इससे मन की नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में शक्ति और साहस प्राप्त होता है।

प्रश्न: क्या Maa Kali Shanivar Vrat सिर्फ स्त्रियाँ ही रख सकती हैं?

उत्तर: नहीं, यह व्रत कोई भी – स्त्री या पुरुष – रख सकता है। जो भी सच्चे मन से मां काली की भक्ति करता है, मां उसे जरूर आशीर्वाद देती हैं।

प्रश्न: Maa Kali Shanivar Vrat कैसे करना चाहिए?

उत्तर: शनिवार को प्रातः स्नान करके मां काली की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर पूजा करें, व्रत रखें और शाम को कथा सुनें। अंत में मां से प्रार्थना करें और नैवेद्य अर्पित करें।

प्रश्न: Maa Kali Shanivar Vrat Katha सुनने से क्या लाभ होता है?

उत्तर: इससे मन को शांति मिलती है, भय दूर होता है, बुरी शक्तियाँ दूर रहती हैं और मां काली की कृपा से आर्थिक, मानसिक व शारीरिक समस्याओं में राहत मिलती है।

प्रश्न: क्या Maa Kali Shanivar Vrat Katha घर पर अकेले भी सुनी जा सकती है?

उत्तर: हाँ, आप इसे अकेले भी श्रद्धा से सुन सकते हैं। मां भक्ति भाव देखती हैं, संख्या नहीं। घर का एक कोना साफ करके वहां पूजा कर सकते हैं।

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