Top 201+ Bhagwat Geeta Shlok In Sanskrit And Hindi With Meaning 🔥🔥 : 10 Timeless Verses with Deep Meaning in English

Anushka Mishra

Bhagwat Geeta Shlok In Sanskrit

राधे राधे!

आपका स्वागत है इस ब्लॉग में, जहाँ हम Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit and Hindi with Meaning” के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के गहन और प्रेरणादायक उपदेशों को समझेंगे। महाभारत के युद्ध के समय, जब अर्जुन अपने कर्तव्यों से विमुख हो गए थे, तब भगवान श्री कृष्ण ने गीता के श्लोकों के जरिए उन्हें धर्म, कर्म और जीवन के सच्चे अर्थ का बोध कराया।

Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit and Hindi with Meaning गीता के ज्ञान को हमारे जीवन में उतारने का सबसे सटीक तरीका है। संस्कृत में गीता के श्लोकों की दिव्यता और हिंदी में उनके अर्थ की सरलता, दोनों मिलकर हमें जीवन के हर पहलू को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं।

उदाहरण के लिए:

Sanskrit Shlok:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥”

Hindi Meaning:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल में नहीं। इसलिए, कर्म को ही अपना धर्म मानो और फल की चिंता से मुक्त हो जाओ।

यह श्लोक हमें सिखाता है कि अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी लालच या फल की अपेक्षा के करना चाहिए।

आइए, इन Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit and Hindi with Meaning के माध्यम से श्री कृष्ण के दिव्य संदेशों को समझें और उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करें।

धन्यवाद! राधे राधे!

Bhagwat Geeta Shlok In Sanskrit

Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit and Hindi with Meaning 🔥🔥 : भगवत गीता के 15 प्रेरणादायक श्लोक व्याख्या सहित

Bhagwat Geeta Shlok In Sanskrit

Chapter 2, Verse 47

श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ||

2.47

अर्थ:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं। इसलिए फल की चिंता छोड़कर निरंतर कर्म करो।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि हमें अपने कार्य पर ध्यान देना चाहिए और फल की चिंता से बचना चाहिए। सफलता केवल मेहनत और लगन से ही मिलती है। परीक्षा, कार्य, या किसी अन्य लक्ष्य के लिए प्रयास करते समय, अगर हम परिणाम की चिंता छोड़कर पूरी ऊर्जा से काम करेंगे, तो मानसिक शांति और सफलता दोनों मिलेगी।

Explanation in English:
This verse motivates us to focus on our efforts without worrying about the results. Success comes through consistent hard work and dedication. Letting go of attachment to outcomes leads to peace and productivity.

Chapter 6, Verse 5

श्लोक:
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् |
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ||

6.5

अर्थ:
मनुष्य को अपने प्रयासों से खुद का उत्थान करना चाहिए और स्वयं को गिरने नहीं देना चाहिए। स्वयं ही अपना सबसे बड़ा मित्र और शत्रु है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मनिर्भरता और आत्म-प्रेरणा पर जोर देता है। सफलता पाने के लिए व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी स्वयं उठानी चाहिए। बाहरी सहायता की अपेक्षा किए बिना, अपनी क्षमताओं पर भरोसा करना और मेहनत करना ही सफलता का मार्ग है।

Explanation in English:
This verse emphasizes self-reliance and self-motivation. To achieve success, one must take responsibility for their own progress. Trust in your abilities and work hard without depending on external help.

Chapter 18, Verse 14

श्लोक:
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् |
विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम् ||

18.14

अर्थ:
सफलता के लिए पाँच चीजें जरूरी हैं: आधार, कर्ता, साधन, प्रयास और ईश्वर की कृपा।

व्याख्या:
यह श्लोक हमें प्रेरित करता है कि सफलता पाने के लिए सही योजना, प्रयास और साधनों का उपयोग करना चाहिए। साथ ही, विश्वास रखना चाहिए कि ईश्वर की कृपा से ही अंतिम परिणाम मिलता है। यदि हम मेहनत करते हैं, तो ईश्वर भी हमें आशीर्वाद देते हैं।

Explanation in English:
This verse teaches that success requires proper planning, effort, and resources. Additionally, divine grace plays a crucial role. Work hard, and the universe will conspire to help you succeed.

Chapter 3, Verse 21

श्लोक:
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: |
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ||

3.21

अर्थ:
श्रेष्ठ व्यक्ति जैसा आचरण करते हैं, अन्य लोग भी उसका अनुसरण करते हैं। उनके द्वारा स्थापित मानक को समाज अपनाता है।

व्याख्या:
यह श्लोक प्रेरित करता है कि हमें ऐसा जीवन जीना चाहिए जो दूसरों के लिए प्रेरणा बने। अपनी मेहनत और लगन से हम न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी उदाहरण बन सकते हैं। नेता, शिक्षक और प्रेरक व्यक्तित्वों के लिए यह विशेष रूप से प्रेरणादायक है।

Explanation in English:
This verse motivates us to live a life that inspires others. Through dedication and hard work, we can set an example not only for ourselves but also for society. Leaders and role models can draw great lessons from this.

Chapter 4, Verse 13

श्लोक:
श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात् |
स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह: ||

4.13

अर्थ:
अपना धर्म (कर्तव्य) भले ही दोषयुक्त हो, लेकिन उसका पालन करना श्रेष्ठ है। दूसरों का धर्म अपनाना भय उत्पन्न करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक प्रेरित करता है कि हमें अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को समझना चाहिए और उसी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। दूसरों की तुलना में अपनी क्षमता और रुचियों के अनुसार काम करना ही सही दिशा है। यह श्लोक आत्मविश्वास बढ़ाने और दूसरों की नकल न करने की सीख देता है।

Explanation in English:
This verse inspires us to focus on our own duties and responsibilities instead of imitating others. Doing what aligns with our capabilities and values is the key to success and inner peace.

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Powerful Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit and Hindi 🔥🔥 : भगवत गीता के 20 महत्वपूर्ण श्लोक अर्थ सहित

Bhagwat Geeta Shlok In Sanskrit

Chapter 6, Verse 32

श्लोक:
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन |
सुखं वा यदि वा दु:खं स योगी परमो मत: ||

6.32

अर्थ:
जो व्यक्ति सभी को अपने समान देखता है, दूसरों के सुख और दुख को अपने जैसा समझता है, वही सच्चा योगी है।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि सच्चे रिश्ते समानता और सहानुभूति पर आधारित होते हैं। दूसरों के सुख-दुख को समझकर ही रिश्तों में सच्चाई और गहराई आती है।

Explanation in English:
This verse teaches that true relationships are built on equality and empathy. Understanding others’ joys and sorrows as your own fosters deep and meaningful connections.

Chapter 3, Verse 26

श्लोक:
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् |
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन् ||

3.26

अर्थ:
ज्ञानी व्यक्ति अज्ञानी लोगों को भ्रमित न करें। वे उनके साथ सामंजस्य बैठाकर कर्म में लगे रहने की प्रेरणा दें।

व्याख्या:
रिश्तों में सहनशीलता और समझदारी से काम लेना चाहिए। दूसरों की कमियों को स्वीकार करते हुए उन्हें प्रेरित करना, रिश्तों को मजबूत बनाता है।

Explanation in English:
In relationships, patience and understanding are key. Accepting others’ shortcomings while inspiring them fosters trust and harmony.

Chapter 17, Verse 15

श्लोक:
अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियं हितं च यत् |
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते ||

17.15

अर्थ:
जो वाणी सत्य, प्रिय और हितकारी हो, और जो किसी को कष्ट न दे, वह वाणी का तप कहलाती है।

व्याख्या:
यह श्लोक सिखाता है कि रिश्तों में संवाद का तरीका महत्वपूर्ण है। सच बोलें लेकिन प्रिय और हितकारी तरीके से। कठोर शब्द रिश्तों को बिगाड़ सकते हैं।

Explanation in English:
This verse emphasizes the importance of kind and truthful communication in relationships. Speak the truth, but do so lovingly and with care to avoid hurting others.

Chapter 12, Verse 13-14

श्लोक:
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च |
निर्ममो निरहंकार: समदु:खसुख: क्षमी ||
सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय: |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ||

12.13-14

अर्थ:
जो सभी से द्वेष रहित है, मित्रवत है, दयालु है, ममता और अहंकार से मुक्त है, सुख-दुख में समान है, सहनशील है और अपने मन को मुझमें अर्पित करता है, वह मेरा प्रिय है।

व्याख्या:
यह श्लोक रिश्तों में दया, सहानुभूति और अहंकाररहित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर देता है। इन गुणों से संबंध मजबूत और प्रेमपूर्ण बनते हैं।

Explanation in English:
This verse highlights the need for compassion, humility, and empathy in relationships. These qualities strengthen bonds and create loving connections.

Chapter 5, Verse 18

श्लोक:
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि |
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: ||

5.18

अर्थ:
जो व्यक्ति विद्या और विनम्रता से युक्त है, वह ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल में समान दृष्टि रखता है।

व्याख्या:
यह श्लोक सिखाता है कि रिश्तों में समानता का दृष्टिकोण आवश्यक है। जब हम दूसरों को समान दृष्टि से देखते हैं और भेदभाव से बचते हैं, तो रिश्ते सुदृढ़ होते हैं।

Explanation in English:
This verse teaches the importance of equality in relationships. Viewing others without bias fosters trust and harmony.

Bhagavad Geeta Shlok with Meaning in English 🔥🔥 : 15 Life-Changing Verses Explained

Bhagwat Geeta Shlok In Sanskrit

Chapter 2, Verse 13

श्लोक:
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ||

2.13

अर्थ:
जैसे शरीर में बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था आती है, वैसे ही आत्मा एक शरीर को त्यागकर दूसरा शरीर धारण करती है। ज्ञानी व्यक्ति इससे भ्रमित नहीं होता।

व्याख्या:
यह श्लोक जीवन के परिवर्तनशील स्वभाव को समझाता है। आत्मा अमर है, और जीवन का हर बदलाव एक चरण मात्र है। इसे समझकर व्यक्ति जीवन में कठिनाइयों और परिवर्तन को सहजता से स्वीकार कर सकता है।

Explanation in English:
This verse explains the impermanence of life and the immortality of the soul. By understanding this, one can accept changes and challenges with calmness and clarity.

Chapter 4, Verse 18

श्लोक:
कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म य: |
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त: कृत्स्नकर्मकृत् ||

4.18

अर्थ:
जो व्यक्ति कर्म में अकर्म (निष्कामता) और अकर्म में कर्म (कर्तव्य) देखता है, वही सच्चा ज्ञानी है।

व्याख्या:
यह श्लोक सिखाता है कि हर कर्म में निष्काम भाव (फल की आसक्ति के बिना कार्य करना) रखना चाहिए। यह समझ जीवन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है।

Explanation in English:
This verse teaches the importance of selfless action. By performing duties without attachment to outcomes, one achieves peace and fulfillment.

Chapter 5, Verse 10

श्लोक:
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति य: |
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ||

5.10

अर्थ:
जो व्यक्ति सभी कर्मों को ईश्वर को अर्पित करके आसक्ति त्यागकर कार्य करता है, वह कमल के पत्ते की तरह जल से अछूता रहता है।

व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि अपने कार्यों को ईश्वर को समर्पित करते हुए, आसक्ति से मुक्त होकर कर्म करें। यह जीवन को सहज और स्वतंत्र बनाता है।

Explanation in English:
This verse inspires us to dedicate all actions to the Divine and work without attachment. Such a mindset brings freedom and detachment, like a lotus leaf untouched by water.

Chapter 6, Verse 5

श्लोक:
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् |
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ||

6.5

अर्थ:
मनुष्य को अपने प्रयासों से खुद का उत्थान करना चाहिए और स्वयं को गिरने नहीं देना चाहिए। स्वयं ही अपना सबसे बड़ा मित्र और शत्रु है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मनिर्भरता और आत्म-प्रेरणा का महत्व बताता है। किसी भी परिस्थिति में खुद को संभालने और प्रेरित करने का दायित्व स्वयं का होता है।

Explanation in English:
This verse emphasizes self-reliance and self-motivation. You are your own best friend or worst enemy, depending on your actions and mindset.

Chapter 18, Verse 66

श्लोक:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मां एकं शरणं व्रज |
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ||

18.66

अर्थ:
सभी धर्मों को त्याग कर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त करूंगा और तुम्हें मुक्ति प्रदान करूंगा। चिंता मत करो।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि जब हम अपने जीवन की समस्याओं और दुविधाओं को ईश्वर को समर्पित करते हैं, तो हमारा बोझ हल्का हो जाता है। पूर्ण समर्पण ही सच्ची शांति और मुक्ति की ओर ले जाता है।

Explanation in English:
This verse teaches that surrendering to the Divine relieves us of all burdens and fears. Absolute faith leads to peace, liberation, and ultimate fulfillment.

निष्कर्ष

“Inspirational Bhagwat Geeta Shlok in Hindi” जीवन के उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए हमें साहस, प्रेरणा और दिशा प्रदान करते हैं। इन श्लोकों में छिपे जीवन के गूढ़ सत्य हमें कर्म, भक्ति, और योग के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करते हैं। ये श्लोक न केवल मानसिक शांति और संतुलन को बढ़ावा देते हैं, बल्कि जीवन को सकारात्मक दिशा में जीने की प्रेरणा भी देते हैं। जब हम इन श्लोकों को अपने जीवन में उतारते हैं, तो हम हर कठिनाई का सामना एक मजबूत और सकारात्मक दृष्टिकोण से करते हैं।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न: Inspirational Bhagwat Geeta Shlok क्यों महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर: ये श्लोक जीवन के कठिन समय में प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये हमें सही निर्णय लेने, अपने कर्तव्यों को निभाने और मानसिक शांति प्राप्त करने की दिशा दिखाते हैं।

प्रश्न: कौन लोग इन श्लोकों से लाभ उठा सकते हैं?

उत्तर: ये श्लोक हर व्यक्ति के लिए उपयोगी हैं, चाहे उसकी उम्र, पेशा या जीवन के हालात कुछ भी हों। यह श्लोक मानसिक संतुलन, शांति और आत्मविश्वास प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।

प्रश्न: Inspirational Bhagwat Geeta Shlok को समझने और जीवन में लागू कैसे करें?

उत्तर: इन श्लोकों को समझने के लिए नियमित अध्ययन करें, उनके अर्थ पर विचार करें और इन्हें जीवन में लागू करने का प्रयास करें। गीता के विशेषज्ञों से मार्गदर्शन भी प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न: Inspirational Bhagwat Geeta Shlok का एक उदाहरण क्या हो सकता है?

उत्तर:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”

यह श्लोक हमें अपने कर्मों में निष्ठा और ईमानदारी के साथ काम करने की प्रेरणा देता है, बिना इसके परिणामों की चिंता किए।

प्रश्न: Inspirational Bhagwat Geeta Shlok हमें कैसे प्रेरित करते हैं?

उत्तर: ये श्लोक हमें निष्काम कर्म, मानसिक शांति, और आत्म-निर्भरता की ओर प्रेरित करते हैं। ये हमें जीवन में अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पण और संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं।

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