Bhagwat Gita Chapter 1: Explain In Hindi and english गीता अध्याय 1: संपूर्ण श्लोकों की हिंदी-अंग्रेजी व्याख्या और अर्थ

Anamika Mishra

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राधे राधे!

🌺 आपका स्वागत है इस ब्लॉग में, जहाँ हम “BhagwatGita Chapter 1 All Shloka Explain in Hindi and English with Meaning” के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के गीता के पहले अध्याय के सभी श्लोकों को विस्तार से समझेंगे। महाभारत के युद्ध की शुरुआत में अर्जुन के मन में उठे द्वंद्व (Arjuna Vishada Yoga) और धर्म-अधर्म के प्रश्नों को लेकर श्री कृष्ण ने गीता के श्लोकों के माध्यम से उन्हें जीवन की सच्चाई और कर्मयोग का मार्ग दिखाया।

“BhagwatGita Chapter 1 All Shloka Explain in Hindi and English with Meaning” न केवल इन श्लोकों का सरल अर्थ समझने में मदद करता है, बल्कि यह आज के जीवन की चुनौतियों—जैसे निर्णय लेने की घड़ी, डर, और कर्तव्य-भ्रम—का समाधान भी देता है। इस अध्याय के 46 श्लोकों में अर्जुन का मनोविज्ञान, युद्ध के प्रति संकोच, और श्री कृष्ण के प्रथम उपदेश छिपे हैं।
चलिए, शुरू करते हैं “BhagwatGita Chapter 1 All Shloka Explain in Hindi and English with Meaning” की इस यात्रा को!

धन्यवाद! 🌸 राधे राधे!

Bhagwat Gita Chapter 1 श्लोक 1-10: धृतराष्ट्र-संजय संवाद और युद्धभूमि का वर्णन

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श्लोक 1

धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||

अर्थ:
धृतराष्ट्र बोले: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए मेरे पुत्र और पांडव, जो युद्ध करने की इच्छा रखते हैं, उन्होंने क्या किया?

व्याख्या:
इस श्लोक में धृतराष्ट्र, जो अंधे होने के कारण युद्धभूमि पर उपस्थित नहीं हो सकते, अपने सारथी संजय से पूछते हैं। “धर्मक्षेत्र” का उल्लेख कुरुक्षेत्र को पवित्र भूमि के रूप में करता है, जहां युद्ध होना है। यह श्लोक धृतराष्ट्र की मानसिक स्थिति को दर्शाता है, जिसमें वह कौरवों के प्रति अपनी पक्षपाती दृष्टि और युद्ध के परिणाम को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हैं।

Explanation in Hindi:
धृतराष्ट्र के इस प्रश्न में उनकी जिज्ञासा और पक्षपात झलकता है। वह जानना चाहते हैं कि उनके पुत्र और पांडवों ने युद्ध की शुरुआत में क्या किया। कुरुक्षेत्र को “धर्मक्षेत्र” कहना यह बताता है कि यह भूमि धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष का प्रतीक है।

Explanation in English:
In this verse, Dhritarashtra expresses his curiosity about the actions of his sons (Kauravas) and the Pandavas, who have gathered on the sacred battlefield of Kurukshetra with the intent to fight. His mention of “Dharmakshetra” highlights the battlefield as a place of moral and spiritual significance, symbolizing the clash between righteousness and unrighteousness.

श्लोक 2

सञ्जय उवाच |
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् || 1.2 ||

अर्थ:
संजय बोले: पांडवों की सेना को व्यवस्थित देखकर, दुर्योधन ने अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा।

व्याख्या:
दुर्योधन की यह प्रतिक्रिया उसकी चिंता और आत्मविश्वास दोनों को दर्शाती है। वह अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर पांडवों की सेना की संगठन शक्ति के बारे में चर्चा करता है। यह बताता है कि युद्ध से पहले ही दुर्योधन मानसिक रूप से पांडवों की सेना को गंभीर चुनौती मान रहा था।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में संजय, धृतराष्ट्र को बताते हैं कि पांडवों की सेना को देखकर दुर्योधन ने तुरंत अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर अपनी चिंता व्यक्त की। यह उसकी रणनीतिक सोच और मानसिक दबाव का संकेत है।

Explanation in English:
In this verse, Sanjaya narrates to Dhritarashtra how Duryodhana, upon seeing the well-organized Pandava army, approaches his teacher Dronacharya. This reveals Duryodhana’s strategic mindset as well as his underlying anxiety about the strength of the opposing army.

श्लोक 3

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् |
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता || 1.3 ||

अर्थ:
(दुर्योधन बोले): हे आचार्य! देखिए, पांडवों की इस विशाल सेना को, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने संगठित किया है।

व्याख्या:
इस श्लोक में दुर्योधन, द्रोणाचार्य का ध्यान पांडवों की संगठित और शक्तिशाली सेना की ओर आकर्षित करता है। यह बताते हुए कि यह सेना उनके ही शिष्य (धृष्टद्युम्न) द्वारा व्यवस्थित की गई है, वह अप्रत्यक्ष रूप से उनके प्रति कटाक्ष करता है।

Explanation in Hindi:
दुर्योधन, पांडवों की सेना की तारीफ करते हुए अपने गुरु से इस पर ध्यान देने को कहता है। धृष्टद्युम्न द्वारा सेना का नेतृत्व द्रोणाचार्य के लिए चुनौतीपूर्ण और अपमानजनक था, क्योंकि धृष्टद्युम्न का जन्म ही उन्हें मारने के लिए हुआ था।

Explanation in English:
Duryodhana highlights the formidable Pandava army, emphasizing that it is led by Dronacharya’s own disciple, Dhrishtadyumna. This comment subtly taunts Drona, as Dhrishtadyumna was prophesied to kill him, adding tension to the narrative.

श्लोक 4

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः || 1.4 ||

अर्थ:
इस सेना में महान धनुर्धारी योद्धा हैं, जो भीम और अर्जुन के समान युद्धकला में निपुण हैं। इसमें युयुधान (सात्यकि), विराट, और महारथी द्रुपद शामिल हैं।

व्याख्या:
इस श्लोक में दुर्योधन, पांडव सेना के मुख्य योद्धाओं की वीरता का उल्लेख करता है। वह भीम और अर्जुन के समान योद्धाओं की उपस्थिति को स्वीकार करते हुए उनकी शक्ति को पहचानता है। यह उसकी रणनीतिक समझ को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
दुर्योधन, पांडव सेना की ताकत का वर्णन करते हुए उनके मुख्य योद्धाओं का नाम लेता है। इससे पता चलता है कि वह अपने शत्रुओं को गंभीरता से ले रहा है और उनकी क्षमता से अच्छी तरह अवगत है।

Explanation in English:
Duryodhana acknowledges the strength of the Pandava army by naming its key warriors, equating their prowess to that of Bhima and Arjuna. This recognition reflects his strategic awareness and respect for the opposition’s capabilities.

श्लोक 5

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् |
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः || 1.5 ||

अर्थ:
पांडवों की सेना में वीर धृष्टकेतु, चेकितान, पराक्रमी काशी के राजा, पुरुजित, कुन्तिभोज, और श्रेष्ठ योद्धा शैब्य भी शामिल हैं।

व्याख्या:
दुर्योधन पांडवों की सेना के अन्य वीर योद्धाओं का उल्लेख करता है। यह श्लोक उनकी रणनीतिक दृष्टि को प्रकट करता है, जिसमें वह अपनी सेना को संगठित करने से पहले दुश्मन की ताकत को भलीभांति समझ लेना चाहता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक दर्शाता है कि दुर्योधन पांडव सेना के हर महत्वपूर्ण योद्धा की पहचान कर रहा है। इससे उसकी सतर्कता और युद्ध के प्रति गंभीरता झलकती है।

Explanation in English:
Duryodhana continues to list the names of prominent warriors in the Pandava army, showcasing his strategic approach to analyze the opposition’s strengths before planning his moves.

श्लोक 6

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् |
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः || 1.6 ||

अर्थ:
पांडवों की सेना में पराक्रमी युधामन्यु, वीर उत्तमौजा, अभिमन्यु (सुभद्रा पुत्र), और द्रौपदी के सभी पुत्र भी शामिल हैं। ये सभी महारथी योद्धा हैं।

व्याख्या:
दुर्योधन पांडव सेना की ताकत का पूरा आकलन कर रहा है। वह हर उस योद्धा का नाम ले रहा है, जो युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह दिखाता है कि पांडवों की सेना में न केवल संख्या में बढ़त है, बल्कि कुशल और अद्वितीय योद्धा भी शामिल हैं।

Explanation in Hindi:
दुर्योधन ने पांडव सेना में शामिल प्रमुख योद्धाओं की सूची में युधामन्यु, उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पुत्रों का नाम जोड़ा। इससे स्पष्ट है कि पांडवों की सेना न केवल संगठित है, बल्कि उसमें कुशल योद्धा भी हैं।

Explanation in English:
Duryodhana completes his analysis of the Pandava army by mentioning Yudhamanyu, Uttamaujas, Abhimanyu (the son of Subhadra), and the sons of Draupadi. This demonstrates that the Pandava army is not only large but also composed of skilled and valiant warriors.

श्लोक 7

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |
नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते || 1.7 ||

अर्थ:
हे श्रेष्ठ ब्राह्मण (द्रोणाचार्य), अब आप हमारी सेना के उन मुख्य योद्धाओं को जानिए, जो हमारे पक्ष के प्रमुख सेनानायक हैं। मैं उन्हें आपके लिए बताता हूं।

व्याख्या:
दुर्योधन अब अपनी सेना की ताकत और उनके प्रमुख योद्धाओं का वर्णन करता है। यह न केवल अपने गुरु को आश्वस्त करने के लिए है, बल्कि अपने आत्मविश्वास को भी व्यक्त करता है। वह अपनी सेना को कम नहीं आंकना चाहता।

Explanation in Hindi:
दुर्योधन ने अपनी सेना के महत्व को रेखांकित करने के लिए द्रोणाचार्य को उन प्रमुख सेनानायकों के बारे में बताया, जो युद्ध में उसकी सेना के नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

Explanation in English:
Duryodhana shifts his focus to his own army and lists its key leaders to reassure Dronacharya of their strength. This also reflects his attempt to bolster his own confidence and that of his commander.

श्लोक 8

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः |
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च || 1.8 ||

अर्थ:
हमारी सेना के प्रमुख योद्धा हैं: आप स्वयं (द्रोणाचार्य), भीष्म, कर्ण, युद्ध में विजयी कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सौमदत्त।

व्याख्या:
दुर्योधन ने अपनी सेना के मुख्य योद्धाओं का नाम लिया, जिनमें से कई गुरु और महान योद्धा हैं। यह उसके आत्मविश्वास को दिखाता है कि उसके पास भी कुशल और शक्तिशाली सेनापति हैं, जो पांडवों का सामना कर सकते हैं।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन ने अपनी सेना के उन योद्धाओं का उल्लेख किया, जो उसके लिए मुख्य स्तंभ हैं। भीष्म और द्रोण जैसे अनुभवी योद्धा उसके आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक हैं।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana lists the stalwart leaders of his army, including Dronacharya, Bhishma, Karna, and others. Their presence symbolizes his confidence in his army’s ability to counter the Pandavas.

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श्लोक 9

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः |
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः || 1.9 ||

अर्थ:
इसके अलावा, कई अन्य वीर योद्धा भी मेरी सेना में हैं, जो मेरे लिए अपने प्राण त्यागने को तैयार हैं। वे विभिन्न प्रकार के शस्त्रों में कुशल और युद्ध में निपुण हैं।

व्याख्या:
दुर्योधन ने अपनी सेना के विशाल और बहादुर योद्धाओं पर गर्व व्यक्त किया। यह उसकी मानसिकता को दर्शाता है कि उसकी सेना के सैनिक न केवल शारीरिक रूप से बलवान हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी पूरी तरह से लड़ाई के लिए तैयार हैं।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन ने अपनी सेना के अन्य अनाम योद्धाओं का उल्लेख किया, जो अपने कौशल और बलिदान के लिए जाने जाते हैं। यह उसकी सेना की ताकत और एकजुटता को दर्शाता है।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana highlights the many unnamed warriors in his army who are ready to sacrifice their lives for his cause. This reflects the strength, unity, and determination of his forces.

श्लोक 10

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् |
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् || 1.10 ||

अर्थ:
हमारी सेना, भीष्म की सुरक्षा के कारण, अपार और असीमित है, जबकि पांडवों की सेना, भीम की सुरक्षा में, सीमित है।

व्याख्या:
दुर्योधन अपनी सेना की ताकत और भीष्म की भूमिका पर जोर देता है। हालांकि, यह उसकी आत्मसंतुष्टि और पांडवों की सेना को कम आंकने की प्रवृत्ति को भी दिखाता है।

Explanation in Hindi:
दुर्योधन ने भीष्म को अपनी सेना की सबसे बड़ी ताकत के रूप में वर्णित किया। इस श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि वह अपनी सेना के बल पर गर्व करता है, लेकिन पांडवों की सेना को हल्के में लेता है।

Explanation in English:
Duryodhana expresses confidence in the unlimited power of his army, safeguarded by Bhishma. However, this verse also hints at his overconfidence and tendency to underestimate the Pandava army led by Bhima.

Bhagwat Gita Chapter 1 श्लोक 11-20: योद्धाओं के शंखनाद और अर्जुन की प्रतिक्रिया

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श्लोक 11

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता: |
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि || 1.11 ||

अर्थ:
आप सभी अपने-अपने मोर्चों पर सावधान होकर खड़े रहें और भीष्म की हर तरह से रक्षा करें।

व्याख्या:
दुर्योधन अपनी सेना को निर्देश देता है कि वे अपने प्रमुख सेनापति भीष्म की हर स्थिति में रक्षा करें। वह भीष्म को अपनी सेना की सबसे बड़ी ताकत मानता है और चाहता है कि उनके रहते सेना में कोई कमजोरी न आए। यह आदेश उसकी रणनीतिक सोच को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
दुर्योधन ने अपनी सेना के योद्धाओं को यह आदेश दिया कि वे अपने-अपने स्थानों पर मजबूती से डटे रहें और भीष्म की सुरक्षा सुनिश्चित करें। यह दिखाता है कि दुर्योधन के लिए भीष्म युद्ध का केंद्रीय स्तंभ हैं।

Explanation in English:
Duryodhana instructs his warriors to remain stationed at their respective positions and ensure Bhishma’s safety at all costs. This reflects his belief that Bhishma is the key to the Kaurava army’s strength and success.

श्लोक 12

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्ध: पितामह: |
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् || 1.12 ||

अर्थ:
कुरु वंश के वयोवृद्ध पितामह भीष्म ने, अपनी शंखध्वनि से सभी को उत्साहित करते हुए जोरदार गर्जना की।

व्याख्या:
भीष्म ने अपनी शंखध्वनि से युद्ध की शुरुआत की घोषणा की और सेना का मनोबल बढ़ाया। उनकी इस कार्रवाई से स्पष्ट होता है कि वह न केवल कौरव सेना के सेनापति हैं, बल्कि उनके लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं।

Explanation in Hindi:
भीष्म ने अपनी गर्जना और शंखध्वनि के माध्यम से कौरव सेना को उत्साहित किया। यह उनकी नेतृत्व क्षमता और योद्धा-धर्म को दर्शाता है।

Explanation in English:
Bhishma, the eldest and most respected warrior of the Kuru dynasty, blew his conch loudly, boosting the morale of the Kaurava army and signaling the commencement of the battle.

श्लोक 13

ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः |
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् || 1.13 ||

अर्थ:
इसके बाद शंख, नगाड़े, ढोल, और तुरही एक साथ बजने लगे, जिससे भयंकर आवाज उत्पन्न हुई।

व्याख्या:
कौरव सेना ने अपने विभिन्न वाद्ययंत्रों के माध्यम से युद्ध की तैयारी की घोषणा की। यह दर्शाता है कि युद्ध न केवल शारीरिक बल, बल्कि मानसिक उत्साह और ध्वनि के माध्यम से भी लड़ा जाता है।

Explanation in Hindi:
कौरव सेना ने शंख और अन्य वाद्ययंत्र बजाकर युद्ध का बिगुल फूंका। यह ध्वनि उनकी ताकत और आत्मविश्वास का प्रतीक थी।

Explanation in English:
The Kaurava army, with their conches, drums, and trumpets, created a tumultuous sound to declare their readiness for battle, symbolizing their strength and enthusiasm.

श्लोक 14

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ |
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || 1.14 ||

अर्थ:
इसके बाद, श्वेत अश्वों से युक्त अपने विशाल रथ पर स्थित माधव (कृष्ण) और पांडव (अर्जुन) ने अपने दिव्य शंख बजाए।

व्याख्या:
कृष्ण और अर्जुन ने अपने दिव्य शंख बजाकर युद्ध में पांडव सेना का मनोबल बढ़ाया। कृष्ण का शंख बजाना यह संकेत देता है कि वह केवल अर्जुन के सारथी नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना के लिए मार्गदर्शक भी हैं।

Explanation in Hindi:
कृष्ण और अर्जुन ने शंख बजाकर पांडव सेना का उत्साहवर्धन किया। कृष्ण का शंख बजाना दर्शाता है कि यह युद्ध केवल भौतिक नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच का संघर्ष है।

Explanation in English:
Krishna and Arjuna, standing on their grand chariot drawn by white horses, blew their celestial conches to uplift the spirit of the Pandava army, signifying the righteousness of their cause.

श्लोक 15

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः |
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः || 1.15 ||

अर्थ:
हृषीकेश (कृष्ण) ने पाञ्चजन्य, धनंजय (अर्जुन) ने देवदत्त, और महाबली भीम ने पौण्ड्र नामक अपने विशाल शंख को बजाया।

व्याख्या:
इस श्लोक में पांडवों के शंख और उनके नामों का उल्लेख किया गया है। यह शंखध्वनि न केवल युद्ध की शुरुआत को दर्शाती है, बल्कि पांडवों के आत्मविश्वास और उनकी धर्म की रक्षा के प्रति दृढ़ता को भी व्यक्त करती है।

Explanation in Hindi:
कृष्ण, अर्जुन, और भीम के शंखध्वनि से पांडव सेना का उत्साह बढ़ा। यह शंख उनकी पहचान और उनकी शक्ति का प्रतीक है।

Explanation in English:
Krishna, Arjuna, and Bhima blew their respective conches—Panchajanya, Devadatta, and Paundra—marking their readiness and determination to uphold righteousness in the battle ahead.

श्लोक 16

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः |
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ || 1.16 ||

अर्थ:
कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय नामक शंख बजाया, और नकुल तथा सहदेव ने क्रमशः सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए।

व्याख्या:
इस श्लोक में पांडवों के अन्य भाइयों—युधिष्ठिर, नकुल, और सहदेव—के शंखों और उनके नामों का उल्लेख है। यह शंखध्वनि उनके साहस और धर्म युद्ध में भागीदारी को दर्शाती है। युधिष्ठिर का “अनंतविजय” यह दर्शाता है कि धर्म के पक्ष में उनकी विजय अनंत है।

Explanation in Hindi:
युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव ने भी अपने-अपने शंख बजाकर युद्ध के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और सेना का मनोबल बढ़ाया। उनके शंख धर्म, विजय, और सौहार्द का प्रतीक हैं।

Explanation in English:
Yudhishthira, Nakula, and Sahadeva blew their conches, Anantavijaya, Sughosha, and Manipushpaka, respectively, symbolizing their commitment to righteousness and boosting the morale of the Pandava army.

श्लोक 17

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः |
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः || 1.17 ||

अर्थ:
श्रेष्ठ धनुर्धारी काशीराज, महारथी शिखंडी, धृष्टद्युम्न, विराट, और अपराजित सात्यकि ने भी अपने-अपने शंख बजाए।

व्याख्या:
इस श्लोक में पांडव पक्ष के अन्य प्रमुख योद्धाओं और उनकी युद्ध में भागीदारी का वर्णन किया गया है। इन योद्धाओं ने अपनी शंखध्वनि से सेना में उत्साह और ऊर्जा का संचार किया। यह दिखाता है कि पांडव सेना में केवल पांडव भाई ही नहीं, बल्कि अन्य वीर भी धर्म युद्ध में समान रूप से समर्पित थे।

Explanation in Hindi:
काशीराज, शिखंडी, धृष्टद्युम्न, विराट और सात्यकि जैसे महान योद्धाओं ने भी अपनी शक्ति और आत्मविश्वास का प्रदर्शन करते हुए शंख बजाए।

Explanation in English:
Warriors like the king of Kashi, Shikhandi, Dhrishtadyumna, Virata, and Satyaki blew their conches, showcasing their readiness and unyielding spirit to fight for righteousness.

श्लोक 18

द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते |
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक् || 1.18 ||

अर्थ:
हे पृथ्वीपति (धृतराष्ट्र), द्रुपद, द्रौपदी के सभी पुत्र, और महान योद्धा अभिमन्यु (सुभद्रा का पुत्र) ने भी अपने-अपने शंख बजाए।

व्याख्या:
इस श्लोक में पांडव सेना के अन्य महत्वपूर्ण योद्धाओं का उल्लेख किया गया है। द्रुपद और द्रौपदी के पुत्र, जो पांडवों की शक्ति के स्तंभ हैं, अपनी शक्ति और साहस का प्रदर्शन करते हुए युद्ध के लिए तैयार हैं। यह उनके धर्म की रक्षा के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र, और अभिमन्यु ने शंख बजाकर पांडव सेना का मनोबल बढ़ाया। यह दिखाता है कि धर्म युद्ध में हर योद्धा का महत्व है।

Explanation in English:
Drupada, the sons of Draupadi, and the mighty Abhimanyu (son of Subhadra) blew their conches, signifying their readiness to contribute to the righteous cause.

श्लोक 19

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् |
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् || 1.19 ||

अर्थ:
यह शंखध्वनि आकाश और पृथ्वी को गुंजायमान करती हुई, धृतराष्ट्र के पुत्रों (कौरवों) के हृदय को विचलित कर गई।

व्याख्या:
पांडव सेना की शंखध्वनि इतनी तीव्र और प्रभावशाली थी कि उसने कौरव सेना के योद्धाओं को मानसिक रूप से अस्थिर कर दिया। यह इस बात का प्रतीक है कि धर्म के प्रति अडिग रहना ही सबसे बड़ी शक्ति है।

Explanation in Hindi:
पांडवों की शंखध्वनि ने कौरव सेना में डर और बेचैनी पैदा कर दी। यह धर्म और अधर्म की मानसिक स्थिति को दर्शाता है।

Explanation in English:
The sound of the Pandava conches resonated through the earth and sky, instilling fear and unease in the hearts of the Kaurava warriors, highlighting the psychological edge of righteousness.

श्लोक 20

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः |
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः || 1.20 ||

अर्थ:
इसके बाद, कपिध्वज (हनुमान का ध्वज धारण करने वाले अर्जुन) ने युद्ध के लिए तैयार कौरव सेना को देखकर अपना धनुष उठा लिया।

व्याख्या:
अर्जुन ने कौरव सेना की युद्ध तैयारी को देखा और तुरंत अपने धनुष को युद्ध के लिए उठाया। यह दिखाता है कि अर्जुन न केवल एक कुशल योद्धा हैं, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। “कपिध्वज” का उल्लेख अर्जुन के अद्वितीय पराक्रम और वीरता का प्रतीक है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन, जिन्हें कपिध्वज कहा गया है, ने कौरव सेना को युद्ध के लिए तैयार देखकर तुरंत अपनी तैयारी शुरू कर दी। यह उनकी तत्परता और समर्पण को दर्शाता है।

Explanation in English:
Arjuna, known as Kapidhvaja (one who carries the banner of Hanuman), lifted his bow as he observed the Kaurava army ready for battle, symbolizing his readiness and resolve to uphold righteousness.

Bhagwat Gita Chapter 1 श्लोक 21-30: अर्जुन का भावनात्मक संकट और युद्ध से इनकार

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श्लोक 21

अर्जुन उवाच |
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत || 1.21 ||

अर्थ:
अर्जुन बोले: हे अच्युत (कृष्ण)! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले चलो।

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन, भगवान कृष्ण से आग्रह करते हैं कि वे उनके रथ को युद्धक्षेत्र में दोनों सेनाओं के मध्य स्थापित करें ताकि वह अपने शत्रुओं को देख सकें। यह अर्जुन की युद्ध के प्रति तत्परता और शत्रुओं का सामना करने की उनकी मानसिकता को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने भगवान कृष्ण से अनुरोध किया कि वे उनके रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा करें ताकि वे युद्ध से पहले अपनी सेना और विरोधियों का अवलोकन कर सकें।

Explanation in English:
Arjuna requested Lord Krishna to place his chariot in the middle of the battlefield so that he could observe both armies before the commencement of the war.

श्लोक 22

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् |
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे || 1.22 ||

अर्थ:
जब तक मैं इन युद्ध के लिए तैयार योद्धाओं को देख न लूं और जान न लूं कि मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना है।

व्याख्या:
अर्जुन स्पष्ट रूप से अपने शत्रुओं को देखना और उनका आकलन करना चाहते हैं। यह उनकी रणनीतिक और मानसिक तैयारी का संकेत है। अर्जुन यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि धर्म की रक्षा के लिए सही निर्णय लिया जाए।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने कहा कि वे यह देखना चाहते हैं कि कौन-कौन उनके विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार है और उन्हें किन-किन से लड़ाई करनी है। यह उनकी रणनीतिक दृष्टि को दर्शाता है।

Explanation in English:
Arjuna expressed his desire to observe the warriors assembled to fight against him, emphasizing his strategic approach and determination to fight for a righteous cause.

श्लोक 23

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागता: |
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव: || 1.23 ||

अर्थ:
मैं उन योद्धाओं को देखना चाहता हूं, जो इस युद्ध में भाग लेने के लिए एकत्र हुए हैं और दुर्योधन जैसे दुर्बुद्धि व्यक्ति का पक्ष लेने के इच्छुक हैं।

व्याख्या:
अर्जुन का यह वक्तव्य दर्शाता है कि वह कौरव सेना के उन योद्धाओं का निरीक्षण करना चाहते हैं, जो अधर्म का समर्थन कर रहे हैं। वह धर्म की रक्षा के लिए सही निर्णय लेने हेतु यह कदम उठाते हैं।

Explanation in Hindi:
अर्जुन उन सभी योद्धाओं को देखना चाहते हैं, जो दुर्योधन का साथ दे रहे हैं और अधर्म का समर्थन कर रहे हैं। यह उनकी नैतिक दृष्टि को दर्शाता है।

Explanation in English:
Arjuna expressed his intent to observe those who have aligned with the unrighteous Duryodhana and are ready to fight in support of his cause, highlighting Arjuna’s moral standpoint.

श्लोक 24

सञ्जय उवाच |
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत |
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् || 1.24 ||

अर्थ:
संजय बोले: हे भारत (धृतराष्ट्र)! गुडाकेश (अर्जुन) द्वारा ऐसा कहने पर, हृषीकेश (कृष्ण) ने उनके रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में ले जाकर खड़ा कर दिया।

व्याख्या:
इस श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को यह सूचित करते हैं कि अर्जुन के निर्देशानुसार भगवान कृष्ण ने रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कर दिया। यह भगवान कृष्ण की अर्जुन के प्रति समर्पण और उनकी भूमिका को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
संजय ने धृतराष्ट्र को बताया कि अर्जुन के आग्रह पर भगवान कृष्ण ने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य स्थापित किया। यह कृष्ण की अर्जुन के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाता है।

Explanation in English:
Sanjaya narrated to Dhritarashtra that upon Arjuna’s request, Lord Krishna positioned the chariot in the middle of the battlefield, showcasing Krishna’s commitment to guiding Arjuna.

श्लोक 25

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् |
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति || 1.25 ||

अर्थ:
भीष्म, द्रोणाचार्य और अन्य सभी राजाओं के सामने रथ को खड़ा करके, हृषीकेश (कृष्ण) ने अर्जुन से कहा, “पार्थ! इन एकत्र हुए कौरवों को देखो।”

व्याख्या:
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उनके शत्रुओं को दिखाया, जिनमें उनके सम्मानित गुरु द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म भी शामिल थे। यह युद्ध के नैतिक और भावनात्मक पहलू को स्पष्ट करता है। कृष्ण अर्जुन को यह समझाना चाहते हैं कि यह संघर्ष केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और नैतिक भी है।

Explanation in Hindi:
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उन सभी योद्धाओं को दिखाया, जो युद्ध के लिए खड़े थे, और उन्हें उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराया।

Explanation in English:
Lord Krishna positioned the chariot in front of Bhishma, Drona, and other warriors and asked Arjuna to observe the assembled Kauravas, emphasizing the moral and emotional complexities of the war.

श्लोक 25

तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄनथ पितामहान् |
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा || 1.26 ||

अर्थ:
वहां अर्जुन ने खड़े हुए अपने पितरों, पितामहों, आचार्यों, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और मित्रों को देखा।

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन युद्धक्षेत्र में खड़े अपने परिजनों और संबंधियों को देखकर विचलित हो जाते हैं। वह देखते हैं कि जिनसे वह प्रेम और स्नेह करते हैं, वे अब उनके विरोधी बनकर युद्ध के लिए खड़े हैं। यह स्थिति अर्जुन के मन में द्वंद्व और भावनात्मक संकट पैदा करती है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने अपने सगे-संबंधियों और प्रियजनों को दोनों सेनाओं में खड़ा देखा। यह दृश्य उनके लिए मानसिक तनाव का कारण बना।

Explanation in English:
Arjuna observed his relatives and loved ones, including elders, teachers, uncles, brothers, sons, grandsons, and friends, standing on both sides of the battlefield, which led to emotional turmoil within him.

श्लोक 26

श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि |
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् || 1.27 ||

अर्थ:
दोनों सेनाओं में अर्जुन ने अपने श्वसुरों (ससुराल पक्ष के रिश्तेदारों) और मित्रों को खड़ा देखा और उन सभी को अपने संबंधी के रूप में पहचान लिया।

व्याख्या:
यह श्लोक अर्जुन की बढ़ती दुविधा को दर्शाता है। उन्होंने देखा कि युद्ध में उनका सामना उन लोगों से होगा, जिनसे उनका पारिवारिक और सामाजिक संबंध है। यह परिस्थिति उन्हें गहरी मानसिक अस्थिरता की ओर ले जाती है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने अपने ससुराल पक्ष और मित्रों को भी युद्ध में खड़ा देखा। यह दृश्य उनके मानसिक तनाव को और बढ़ा देता है।

Explanation in English:
Arjuna identified his in-laws and friends among the warriors on both sides, intensifying his inner conflict and emotional distress.

श्लोक 27

कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् |
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् || 1.28 ||

अर्थ:
अर्जुन ने कहा: हे कृष्ण! इन युद्ध के लिए एकत्र हुए अपने स्वजनों को देखकर मैं करुणा और विषाद से भर गया हूं।

व्याख्या:
अर्जुन का हृदय अपने स्वजनों को देखकर द्रवित हो उठता है। उनके मन में करुणा और दया का भाव उत्पन्न होता है। यह बताता है कि अर्जुन केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और नैतिक व्यक्ति भी हैं, जो अपनों के खिलाफ युद्ध करने में हिचकिचा रहे हैं।

Explanation in Hindi:
अपने ही परिवार और प्रियजनों को युद्ध के लिए खड़ा देखकर अर्जुन के मन में करुणा का भाव जाग्रत हो गया।

Explanation in English:
Seeing his own relatives and loved ones prepared for battle, Arjuna was overwhelmed with compassion and sorrow.

श्लोक 28

सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति |
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते || 1.29 ||

अर्थ:
मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं, मेरा मुख सूख रहा है, मेरे शरीर में कंपकंपी हो रही है, और मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक अर्जुन की शारीरिक और मानसिक स्थिति का वर्णन करता है। अपने प्रियजनों के विरुद्ध युद्ध करने की स्थिति ने उनके शरीर और मन को गहराई से प्रभावित किया है। उनकी दुविधा और विषाद स्पष्ट रूप से प्रकट हो रहे हैं।

Explanation in Hindi:
अर्जुन अपने प्रियजनों के खिलाफ युद्ध की कल्पना मात्र से ही शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर महसूस करने लगते हैं।

Explanation in English:
Arjuna’s emotional turmoil manifests physically as he experiences trembling, dry mouth, and raised hair, reflecting his deep inner conflict about fighting his loved ones.

श्लोक 29

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते |
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः || 1.30 ||

अर्थ:
मेरा गाण्डीव धनुष हाथ से छूट रहा है, मेरी त्वचा जल रही है, मैं खड़ा नहीं रह पा रहा हूं, और मेरा मन भ्रमित हो रहा है।

व्याख्या:
अर्जुन की मानसिक स्थिति इतनी अस्थिर हो गई है कि वह अपने धनुष को भी संभालने में असमर्थ हो गए हैं। उनकी मनःस्थिति भ्रमित हो गई है, और वह युद्ध लड़ने की क्षमता खोते हुए प्रतीत होते हैं। यह श्लोक उनके गहरे मानसिक और शारीरिक संकट को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन युद्ध करने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो गए हैं। उनका गाण्डीव धनुष हाथ से फिसल रहा है और उनका मन पूरी तरह से विचलित है।

Explanation in English:
Arjuna felt physically and mentally incapacitated, with his bow slipping from his hands, his skin burning, and his mind completely bewildered, symbolizing his overwhelming despair.

श्लोक 30

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते |
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः || 1.30 ||

अर्थ:
मेरा गाण्डीव धनुष हाथ से छूट रहा है, मेरी त्वचा जल रही है, मैं खड़ा नहीं रह पा रहा हूं, और मेरा मन भ्रमित हो रहा है।

व्याख्या:
अर्जुन की मानसिक स्थिति इतनी अस्थिर हो गई है कि वह अपने धनुष को भी संभालने में असमर्थ हो गए हैं। उनकी मनःस्थिति भ्रमित हो गई है, और वह युद्ध लड़ने की क्षमता खोते हुए प्रतीत होते हैं। यह श्लोक उनके गहरे मानसिक और शारीरिक संकट को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन युद्ध करने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो गए हैं। उनका गाण्डीव धनुष हाथ से फिसल रहा है और उनका मन पूरी तरह से विचलित है।

Explanation in English:
Arjuna felt physically and mentally incapacitated, with his bow slipping from his hands, his skin burning, and his mind completely bewildered, symbolizing his overwhelming despair.

Bhagwat Gita Chapter 1 श्लोक 31-40: अर्जुन के तर्क: धर्म, परिवार, और समाज का भय

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श्लोक 31

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव |
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे || 1.31 ||

अर्थ:
हे केशव (कृष्ण)! मैं अशुभ संकेत देख रहा हूं और अपने स्वजनों को युद्ध में मारने से कोई लाभ नहीं देखता।

व्याख्या:
अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा कि उन्हें इस युद्ध से कोई कल्याण होता नहीं दिख रहा है। वह अपने प्रियजनों को मारने के परिणामस्वरूप होने वाले दुख और विनाश को देख रहे हैं। यह उनके नैतिक और भावनात्मक द्वंद्व को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन को युद्ध के दुष्परिणामों का अहसास हो रहा है और उन्हें अपने स्वजनों को मारने का कोई उचित कारण समझ नहीं आ रहा है।

Explanation in English:
Arjuna expressed to Krishna that he foresaw only misfortune and could not see any good coming from killing his own relatives in the war.

श्लोक 32

न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च |
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा || 1.32 ||

अर्थ:
हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूं, न राज्य और न सुख। हे गोविंद! हमें राज्य, भोग या जीवन की भी क्या आवश्यकता है?

व्याख्या:
अर्जुन इस श्लोक में स्पष्ट करते हैं कि वह युद्ध के परिणामस्वरूप मिलने वाले राज्य या सुखों में कोई रुचि नहीं रखते। वह समझते हैं कि युद्ध के माध्यम से अर्जित विजय का कोई अर्थ नहीं होगा यदि उनके प्रियजन ही न रहें।

Explanation in Hindi:
अर्जुन को यह एहसास हो गया कि इस युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद भी उन्हें कोई वास्तविक सुख नहीं मिलेगा।

Explanation in English:
Arjuna realized that even victory in the war would bring him no real happiness, as it would come at the cost of losing his loved ones.

श्लोक 33

येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च |
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च || 1.33 ||

अर्थ:
जिनके लिए हम राज्य, भोग और सुख चाहते हैं, वे सभी यहां युद्ध में अपने प्राण और धन त्यागने के लिए तैयार खड़े हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक अर्जुन की गहरी भावना को दर्शाता है। वह सोचते हैं कि जिनके साथ सुख-सुविधाओं का आनंद लेना है, वे ही अब युद्ध में शत्रु बनकर खड़े हैं।

Explanation in Hindi:
अर्जुन को लगता है कि जिनके साथ जीवन का आनंद लेना था, वे ही इस युद्ध में उनके विरोधी बनकर खड़े हैं।

Explanation in English:
Arjuna reflected that the very people for whom he desired power and pleasures were now standing against him in battle, ready to sacrifice their lives.

श्लोक 34

आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः |
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा || 1.34 ||

अर्थ:
यहां आचार्य, पिता, पुत्र, पितामह, मामाओं, श्वसुर, पौत्र, बहनोई और अन्य संबंधी खड़े हैं।

व्याख्या:
अर्जुन यह गिनाते हैं कि युद्ध के मैदान में उनके अपने कितने करीबी और प्रियजन खड़े हैं। इन संबंधों की गिनती उनके मन में पैदा हुए गहरे विषाद को और बढ़ा देती है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने अपने सगे-संबंधियों का उल्लेख करते हुए अपनी मानसिक स्थिति को दर्शाया। वह सोचते हैं कि इन सभी के साथ युद्ध करना कितना कठिन है।

Explanation in English:
Arjuna enumerated his close relatives and dear ones standing on the battlefield, emphasizing the depth of his sorrow and emotional conflict.

श्लोक 35

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन |
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते || 1.35 ||

अर्थ:
हे मधुसूदन! मैं इन्हें मारना नहीं चाहता, भले ही वे मुझे मार दें। तीनों लोकों का राज्य भी मिले तो क्या, पृथ्वी के लिए ऐसा करना तो और भी नहीं चाहता।

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन अपने मन की गहराई से यह कहते हैं कि किसी भी मूल्य पर, चाहे वह तीनों लोकों का साम्राज्य ही क्यों न हो, वह अपने प्रियजनों का वध नहीं करना चाहते। यह उनकी गहन करुणा और नैतिक मूल्यों को दिखाता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने कहा कि वह पृथ्वी के राज्य या यहां तक कि तीनों लोकों के साम्राज्य के लिए भी अपने संबंधियों को मारने की इच्छा नहीं रखते।

Explanation in English:
Arjuna declared that he had no desire to kill his relatives, even for the sake of ruling the Earth or attaining sovereignty over the three worlds.

श्लोक 36

निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन |
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः || 1.36 ||

अर्थ:
हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या सुख मिलेगा? उन्हें मारने से तो हमें केवल पाप ही लगेगा, भले ही वे आक्रमणकारी हों।

व्याख्या:
अर्जुन इस श्लोक में बताते हैं कि कौरवों को मारकर भी कोई आनंद प्राप्त नहीं होगा, क्योंकि यह कार्य पाप का कारण बनेगा। भले ही कौरव अधर्म के मार्ग पर हैं, लेकिन उनके साथ संबंध और नैतिकता अर्जुन को उनके वध से रोकते हैं।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने अपने मन की उलझन को प्रकट किया, यह समझते हुए कि कौरवों का वध करना उनके लिए पापमय होगा, चाहे वे गलत रास्ते पर क्यों न हों।

Explanation in English:
Arjuna expressed his inner conflict, recognizing that killing the Kauravas would bring no joy and would only result in sin, even though they were on the wrong path.

श्लोक 37

तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् |
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव || 1.37 ||

अर्थ:
इसलिए, हे माधव! हमें अपने बांधव, धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारना उचित नहीं है। अपने स्वजनों को मारकर हम कैसे सुखी हो सकते हैं?

व्याख्या:
यहां अर्जुन अपने कर्तव्य और अपने स्वजनों के प्रति प्रेम के बीच संघर्ष करते हैं। उन्हें यह समझ नहीं आता कि अपने ही परिवार और संबंधियों को मारने के बाद वह सुखी कैसे हो सकते हैं।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा कि अपने स्वजनों को मारकर सुख की कोई संभावना नहीं है, इसलिए यह कार्य उचित नहीं है।

Explanation in English:
Arjuna told Krishna that killing his relatives would not bring happiness and therefore, such an act would not be justified.

श्लोक 38

यदि ह्येतानपश्यन्ति लोभोपहतचेतसः |
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् || 1.38 ||

अर्थ:
लोभ से अंधे हुए ये लोग न तो कुल के नाश के दोष को देख पा रहे हैं, न मित्रों के साथ द्रोह करने के पाप को।

व्याख्या:
अर्जुन ने कहा कि कौरव अपने स्वार्थ और लोभ के कारण अंधे हो गए हैं, और वे यह समझने में असमर्थ हैं कि कुल के नाश और अपने मित्रों के साथ द्रोह करना कितना बड़ा पाप है।

Explanation in Hindi:
कौरवों का लोभ और स्वार्थ उन्हें अपने कर्मों के दुष्परिणामों को समझने से रोक रहा है।

Explanation in English:
The Kauravas, blinded by greed and selfishness, were unable to see the sin in destroying their family and betraying their friends.

श्लोक 39

कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् |
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन || 1.39 ||

अर्थ:
हे जनार्दन! जब हम कुल के नाश से होने वाले दोष को भली-भांति जानते हैं, तो हमें इस पाप से क्यों न बचना चाहिए?

व्याख्या:
अर्जुन इस श्लोक में भगवान कृष्ण से यह प्रश्न करते हैं कि जब हमें यह ज्ञान है कि कुल के नाश से समाज और परिवार में अव्यवस्था पैदा होगी, तो फिर क्यों न हम इस विनाशकारी कार्य से बचें?

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने भगवान से यह कहा कि जब हम जानते हैं कि कुल के नाश से समाज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, तो हमें इससे बचना चाहिए।

Explanation in English:
Arjuna asked Krishna why they should not avoid such a sinful act when they were fully aware of the consequences of destroying the family and the chaos it would bring to society.

श्लोक 40

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः |
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत || 1.40 ||

अर्थ:
कुल के नाश होने पर सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं, और धर्म के नष्ट होने पर पूरा कुल अधर्म के अधीन हो जाता है।

व्याख्या:
अर्जुन समझाते हैं कि परिवार और समाज की संरचना धर्म के पालन पर आधारित होती है। यदि कुल का नाश हो जाता है, तो धार्मिक मूल्यों का पालन बंद हो जाएगा, और अधर्म समाज पर हावी हो जाएगा।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने कहा कि कुल के नाश से धर्म की हानि होती है, और धर्म के अभाव में समाज अधर्म और अराजकता की ओर बढ़ जाता है।

Explanation in English:
Arjuna explained that the destruction of the family leads to the loss of eternal family traditions, and with the decline of dharma, the entire family succumbs to adharma (unrighteousness).

Bhagwat Gita Chapter 1 श्लोक 41-47: अर्जुन का कृष्ण को समर्पण और गीता की शुरुआत

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श्लोक 41

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः |
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः || 1.41 ||

अर्थ:
हे कृष्ण! अधर्म के बढ़ने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं, और स्त्रियों के दूषित होने से वर्ण-संकर (जातियों का मिश्रण) उत्पन्न होता है।

व्याख्या:
अर्जुन यह बताते हैं कि जब धर्म का पालन समाप्त हो जाता है, तो परिवार की स्त्रियां अपने नैतिक कर्तव्यों से विचलित हो जाती हैं। इससे समाज में असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है और सामाजिक व्यवस्था भंग हो जाती है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने भगवान कृष्ण को बताया कि अधर्म के कारण समाज का संतुलन बिगड़ जाएगा, और वर्ण-संकर के कारण समाज में अराजकता फैल जाएगी।

Explanation in English:
Arjuna explained to Krishna that with the rise of unrighteousness, the moral integrity of women declines, leading to social chaos and the birth of mixed classes, disrupting societal harmony.

श्लोक 42

सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च |
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः || 1.42 ||

अर्थ:
वर्ण-संकर कुल का और कुल को नष्ट करने वालों का नरक का कारण बनता है। पिंड और तर्पण क्रिया के अभाव में उनके पितर भी गिर जाते हैं।

व्याख्या:
अर्जुन ने यह बताया कि जब परिवार और समाज की धार्मिक परंपराएं नष्ट हो जाती हैं, तो पितरों (पूर्वजों) को मिलने वाले तर्पण और पिंडदान जैसी क्रियाएं समाप्त हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप पितर भी कष्ट भोगते हैं।

Explanation in Hindi:
धार्मिक अनुष्ठानों के नष्ट होने से परिवार के पूर्वजों को श्राद्ध और तर्पण का लाभ नहीं मिल पाता, जिससे वे कष्ट झेलते हैं।

Explanation in English:
Arjuna highlighted that the destruction of family traditions leads to the cessation of sacred rites for ancestors, depriving them of their peace and leading to their suffering.

श्लोक 43

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः |
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः || 1.43 ||

अर्थ:
इन वर्ण-संकर उत्पन्न करने वाले दोषों से कुलघातियों के कारण जाति धर्म और कुल धर्म, दोनों नष्ट हो जाते हैं।

व्याख्या:
अर्जुन यह बताते हैं कि जब वर्ण-संकर की समस्या बढ़ जाती है, तो इससे सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्य नष्ट हो जाते हैं। यह समाज की समग्र स्थिरता और परंपराओं को समाप्त कर देता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन के अनुसार, कुल के नाश से उत्पन्न वर्ण-संकर के कारण धर्म और पारंपरिक सामाजिक संरचनाएं समाप्त हो जाती हैं।

Explanation in English:
Arjuna explained that the rise of mixed classes due to the destruction of families leads to the loss of social and familial duties, ultimately causing the breakdown of societal traditions.

श्लोक 44

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन |
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम || 1.44 ||

अर्थ:
हे जनार्दन! कुल धर्म नष्ट हो जाने वाले मनुष्यों का अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है, ऐसा हमने सुना है।

व्याख्या:
अर्जुन यहां अपने सुने हुए शास्त्रीय ज्ञान का उल्लेख करते हैं। वह कहते हैं कि जिन परिवारों के धर्म समाप्त हो जाते हैं, वे लंबे समय तक अधोगति भोगते हैं।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने कहा कि कुल धर्म नष्ट हो जाने के परिणामस्वरूप समाज के लोग लंबे समय तक कष्ट भोगते हैं।

Explanation in English:
Arjuna mentioned that those whose family traditions are destroyed dwell in hell indefinitely, as he had learned from scriptures.

श्लोक 45

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् |
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः || 1.45 ||

अर्थ:
हाय! हम कितने बड़े पाप को करने का निश्चय कर बैठे हैं, जो राज सुख के लोभ में अपने ही स्वजनों को मारने के लिए तैयार हो गए हैं।

व्याख्या:
अर्जुन को यह एहसास होता है कि सत्ता और सुख के लालच में वह अपने परिवार के विनाश जैसे पाप को करने जा रहे हैं। यह उनके नैतिक और भावनात्मक द्वंद्व को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने अपने निर्णय पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि राजसुख के लालच में अपने परिवार का नाश करना बहुत बड़ा पाप है।

Explanation in English:
Arjuna lamented his decision, realizing that his desire for royal pleasures was leading him to commit the great sin of destroying his own family.

श्लोक 46

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः |
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युः तन्मे क्षेमतरं भवेत् || 1.46 ||

अर्थ:
यदि मुझे बिना प्रतिरोध और बिना शस्त्र उठाए युद्धभूमि में शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मार दें, तो यह मेरे लिए अधिक शुभ होगा।

व्याख्या:
यहां अर्जुन ने अपनी युद्ध लड़ने की इच्छा को छोड़ते हुए आत्मसमर्पण कर दिया। वह सोचते हैं कि बिना लड़े मारे जाना भी युद्ध में अपने स्वजनों को मारने से बेहतर है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने भगवान से कहा कि बिना शस्त्र उठाए मारा जाना, अपने स्वजनों का वध करने से अधिक श्रेष्ठ है।

Explanation in English:
Arjuna expressed that being killed unarmed in battle would be more preferable than fighting and killing his own relatives.

श्लोक 47

एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः || 1.47 ||

अर्थ:
ऐसा कहकर अर्जुन युद्धभूमि में रथ के भीतर बैठ गए, अपना धनुष और बाण छोड़कर, शोक और दु:ख से व्याकुल मन के साथ।

व्याख्या:
अर्जुन अपने नैतिक संकट और भावनात्मक उथल-पुथल के कारण युद्ध लड़ने में असमर्थ हो गए। उन्होंने अपने शस्त्र छोड़ दिए और युद्ध न लड़ने का निश्चय किया।

Explanation in Hindi:
अर्जुन के मन में गहरे शोक और कर्तव्य के प्रति असमंजस की भावना ने उन्हें निष्क्रिय बना दिया, और वह युद्ध लड़ने के लिए तैयार नहीं हो सके।

Explanation in English:
Overwhelmed by sorrow and moral dilemma, Arjuna gave up his weapons and resolved not to fight, unable to reconcile his emotions with his duty.

निष्कर्ष

“Bhagwat Geeta Chapter 1 All Shloka Explain in Hindi and English with Meaning” हमें जीवन के प्रथम अध्याय में छिपे गहरे संदेशों को समझने और उनके जीवन में उपयोग को समझने का एक सुनहरा अवसर देता है। अध्याय 1, जिसे “अर्जुन-विषाद योग” कहा जाता है, मानव मन के संदेहों, चुनौतियों और संघर्षों को उजागर करता है। यह अध्याय दिखाता है कि कैसे सही मार्गदर्शन और ज्ञान से हम अपने भ्रम और असमंजस से बाहर निकल सकते हैं।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न: Bhagwat Geeta Chapter 1 में क्या बताया गया है?

उत्तर: भगवद गीता के पहले अध्याय, “अर्जुन-विषाद योग,” में अर्जुन की मानसिक स्थिति का वर्णन है। यह उनके कर्तव्य और व्यक्तिगत भावनाओं के बीच द्वंद्व को दर्शाता है।

प्रश्न: Bhagwat Geeta Chapter 1 का मुख्य संदेश क्या है?

उत्तर: इसका मुख्य संदेश है कि जीवन में चाहे कितनी भी बड़ी चुनौती क्यों न हो, हमें अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटना चाहिए। सही ज्ञान और मार्गदर्शन से हम हर समस्या का हल निकाल सकते हैं।

प्रश्न: इस अध्याय को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण श्लोक कौन-से हैं?

उत्तर:
धृतराष्ट्र उवाच: यह युद्धभूमि की शुरुआत का वर्णन करता है।
अर्जुन का संवाद: जो उनके मनोविज्ञान और संघर्षों को दर्शाता है।
हर श्लोक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पूरे अध्याय के भाव को प्रकट करता है।

प्रश्न: क्या Bhagwat Geeta Chapter 1 आधुनिक जीवन में उपयोगी है?

उत्तर: हां, यह अध्याय हमें सिखाता है कि किसी भी चुनौतीपूर्ण स्थिति में धैर्य, आत्म-नियंत्रण और सही निर्णय लेना कितना महत्वपूर्ण है। यह व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन दोनों के लिए उपयोगी है।

प्रश्न: इस अध्याय को हिंदी और अंग्रेजी में समझने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

उत्तर: श्लोकों को पढ़कर, उनका अर्थ समझकर, और उनके व्याख्यान को सुनकर इस अध्याय को गहराई से समझा जा सकता है। दोनों भाषाओं में इसका अध्ययन करने से इसका गूढ़ ज्ञान अधिक स्पष्ट होता है।

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